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________________ ( ६२ ) नाराचसंहनननामकर्मके उदयसे हड्डियोम नेटन और कीले लगी होती हैं । अर्द्धनाराचसंहनननामकर्मके उदयसे हड्डियोकी संधियाँ आधी कीलीत होती हैं, यानी एक तरफ तो कलि लगी होती हैं परन्तु दूसरी तरफ नहीं होती । कीलकसंहनननामकर्मके उदयसे हड्डियोकी सॅधियॉ कीलोसे मिली होती हैं । + असंप्राप्तासृपाटिकासंहनननामकर्मके उदयसे जुदी जुदी हड्डियाँ नसोसे बॅधी होती हैं, उनमे कीले नहीं लगी होती हैं । ८ स्पर्श ( कड़ा, नर्म हलका, भारी, ठंडा, गरम, चिकना, रूखा ) -- इस नामकर्मके उदयसे शरीर में कड़ा, नर्म, हलका भारी वगैरह स्पर्श होता है । ५ रस (खट्टा, मीठा, कड़वा, कषायला, चर्परा ) इस नामकर्मके उदयसे शरीर मे खट्टा मीठा वगैरह रस होते हैं । २ गंध ( सुगंध दुर्गंध ) - इस नामकर्मके उदयसे शरीर मे सुगंध या दुर्गंध होती हैं । ५ वर्ण (काला, पीला, नीला, लाल, सफेद ) – इस नामकर्मके उदयसे शरीरमे काला, पीला, वगैरह रंग होते हैं । ४ आनुपूर्व्य, (नरक, तिर्यच, मनुष्य, देव ) – इस नाम - कर्मके उदयसे विग्रहगतिमे यानी मरनेके पीछे और जन्मसे पहले रास्ते में मरने से पहले के शरीर के आकार के आत्माके प्रदेश रहते हैं । १ अगुरुलघु —- इस नामकर्मके उदयसे शरीर न तो ऐसा
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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