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________________ (५९) आयुकर्म:-आयुकर्मके चार भेद हैं:-नरकआयु, तिर्यंच आयु, मनुष्यआयु, देवआयु ।। नरकआयु उसे कहते हैं जो जीवको नारकीके शरीरमे रोक रक्खे। तिर्यचआयु उसे कहते हैं जो जीवको तिर्यचके शरीरमें रोक रक्खे । __ मनुष्यआयु उसे कहते हैं जो जीवको मनुष्यके शरीरये रोक रक्खे । देवआयु उसे कहते हैं जो जीवको देवके शरीरमे रोक रक्खे । नामकर्म--इस कर्मकी ९३ प्रकृतियाँ हैं: ४ गति ( नरक, तिर्यच मनुष्य, देव )-इस गति नामकर्मके उदयसे जीवका आकार नरक, तियेच, मनुष्य और देवके समान बनता है। ५ जाति-एकइंद्रिय, दोयइन्द्रिय, तीनइंद्रिय, चारइंद्रिय, पॉचइंद्रिय,—इस जातिनामकर्मके उदयसे जीव एकइंद्रिय आदि शरीरको धारण करता है। शरीर ज (औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तेजस, कार्माण) -इस शरीरनामकर्मके उदयसे जीव औदारिक आदि गरीरको धारण करता है। ___ * औदारिप शरीर पूल दारीरको करते हैं. पर हर भाप निको फे होता है । वैशियपारीर देव, नारी और किती रित डिया भी रोता है। इस शरीरपा धारी अपने मगरको जितना चारपटारा
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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