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________________ (५८) प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ उन्हे कहते हैं __ जो आत्माके सकलचारित्रको घाते अर्थात् जिनके उदयसे मुनियोंके व्रतपालन करनेके परिणाम न हो। ___ संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ उन्हें कहते हैं जो आत्माके यथाख्यातचारित्रको घाते अर्थात् जिनके उदयसे चारित्रकी पूर्णता न हो। नोकषाय (किंचित्कषाय ) के ९ भेद हैं:--हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद । हास्य उसे कहते हैं जिसके उदयसे हँसी आवे | रति उसे कहते हैं जिसके उदयसे प्रीति हो । अरति उसे कहते हैं जिसके उदयसे अप्रीति हो । शोक उसे कहते हैं जिसके उदयसे संताप हो । भय उसे कहते हैं जिसके उदयसे डर लगे । जुगुप्सा उसे कहते हैं जिसके उदयसे ग्लानि उत्पन्न हो । स्त्रीवेद उसे करते हैं जिसके उदयसे जीवके पुरुषसे रमनेके भाव हों। पुंवेद उसे कहते हैं जिसके उदयसे स्त्रीसे रमनेके भाव नपुंसकवेद उसे हैं जिसके उदयसे स्त्री पुरुष दोनोंसे रमनेके परिणाम हों। __इस प्रकार १६ कपाय, ९ नोकषाय, ये २५ चारित्रमोहनीयकी और ३ दर्शनमोहनीयकी कुल मिलाकर २८ मोहनी यकर्मकी प्रकृतियाँ हैं।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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