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________________ (५४) मॉगे, परन्तु उन्होंने देनेसे इन्कार किया, विद्यार्थीने दूकानमेसे पैसे चुराकर पुस्तकें मोल ले ली। (ज) पाठशालाएँ खुलवानेमे, भट्टारक बनकर धर्म गान कुछ भी न करके मजेसे चैन उड़ानेसे, ऐसे भट्टारकोंकी वयावृत्ति करनेने धर्मके लिए झुठ बोलनेसे, बालबच्चोंको न पढानेसे, अनाथालय ओपधालय खुलवानेसे हिंसक मनुष्यों के साथ सम्बन्ध रखनेसे, निर्धन माइयोंकी सहायता करनेसे, पेटके लिये भीख माँगनेसे, विद्या उपार्जन करने के लिये अन्य देशोंमें जानेसे, झूठी हॉ में हाँ मिलानेसे, विद्यार्थियोको वजीफे देकर पढनेमे, जबान भाई बंधुओंके मरनेपर उधार लेकर भाइयोंको लड्डू खिलानेसे, बच्चाकी छोटी उम्रमें शादी करनेसे, धर्मादेके रुपयोंको व्यर्थ खर्च करनेमें, बेटीपर रुपया लेकर अयोग्य वर व्याहनेसे, मासाहारियोंमें दयाधर्मकी पुस्तकें बॉटनेसे, स्त्रियोंको पढानेसे। दसवाँ पाठ। कर्मोकी उत्तरप्रकृतियाँ । ____ कर्मकी मूल प्रकृतियाँ ८ हैं और उत्तरप्रकृतियाँ १४८ हैं । ज्ञानावरणकी ५, दर्शनावरणकी ९, वेदनीयकी २, मोहनीयकी २८, आयुकी ४, नामकी ९३, गोत्रकी २ और अंतरायकी ५। ___ ज्ञानावरणकर्म-मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण ये पाँच ज्ञानावरणकर्मके भेद अथवा प्रकृतियाँ हैं । १ इन्द्रियों तथा मनसे जो कुछ जाना जाता है उसे मतिज्ञान कहते हैं । २ मतिनानसे जानी हुई वस्तुके सम्बन्धसे अन्य बातको जानना श्रुतजान _है। ये दोनों जान चाहे ज्यादह चाहे कम हरएक जीवके होते हैं ।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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