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________________ ( ३१ ) अणुव्रत ५ होते हैं: – १ अहिंसाणुव्रत, २ सत्याणुव्रत, ३ अचौर्याणुव्रत, ४ ब्रह्मचर्याणुत्रत, और ५ परिग्रहपरिमाणाणुव्रत । १ प्रमाद से संकल्पपूर्वक ( इरादा करके ) त्रस जीवोंका घात नहीं करना, अहिंसा अणुव्रत है | अहिंसाणुव्रती ' मैं इस जीवको मारूँ ' ऐसे संकल्पसे कभी किसी जीवका घात नहीं करता, न कभी किसी जीवको मारनेका विचार करता है और न वचनसे किसीसे कहता है कि तुम इसे मारो । घरबार बनाने, खेती व्यापार करने तथा शत्रुसे अपने को बचाने में जो हिंसा होती है उसका गृहस्थ त्यागी नहीं होता । २ स्थूल ( मोटा ) झूठ न तो आप बोलना, न दूसरे से बुलवाना और ऐसा सच भी नहीं बोलना जिसके बोलने से किसी जीवका अथवा धर्मका घात होता हो । भावार्थ - प्रमाद से जीवोको पीड़ाकारक वचन नहीं बोलना सो सत्य अणुव्रत है । ३ लोभ वगैरह प्रमादके वशमें आकर विना दिये हुए किसीकी वस्तुको ग्रहण नहीं करना अचौर्य अणुव्रत है । अचौर्य अणुव्रतका धारी दूसरेकी चीजको न तो आप लेता है और न उठाकर दूसरेको देता है । 1 1 ४ परस्त्रीसेवनका त्याग करना ब्रह्मचर्य अणुव्रत है । ब्रह्मचर्य अणुव्रतका धारी अपनी स्त्रीको छोड़कर अन्य सब स्त्रियोंको पुत्री और वहिन के समान समझता है । कभी किसीको बुरी निगाहसे नहीं देखता है । ५ अपनी इच्छानुसार धन, धान्य, हाथी, घोड़े, नौकर, ३
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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