SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मतत्व-विचार में आना पसन्द करे ही नहीं ! लेकिन, आदमी वह सब भूल जाता है और जो नया जीवन प्राप्त हुआ है, उसी में आनन्द मानता है ! हमारा जीवन नदी के दो किनारो को जोडने वाले पुल के समान है। उसमें एक किनारे को हम जन्म कहते है और दूसरे किनारे को मरण करते है। वास्तव मे दोनो में अन्तर नहीं है। एक से आना है और दूसरे से जाना है | आने वाला पहले मर-कर ही आता है और जाने वाला भी जन्म ले कर ही जाता है, लेकिन हम जन्म के समय बाजे बजाते है, मिठाइयाँ बॉटते है और बड़ा उत्सव मनाते हैं, जबकि मरण के समय रोते-धोते है और कई दिनो तक शोक मनाते है। इसका कारण क्या ? राग और स्वार्थ या और कुछ ? राग और द्वेष ये दो ही हमें ससार में भटकाने वाले महान् शत्रु है। फिर भी हम उनका सग छोड़ते नहीं, यह क्या कम दुःख की बात है ? - मनुष्य गर्भावस्था का दुःख बाहर आकर क्यो भूल जाता है ? यह भी मैं आपको समझाना चाहता हूँ। मरण-शय्या पर पड़ा हुआ आदमी कहता है 'अगर मै बच गया तो धर्म करूँगा' पर, अगर वह सच-मुच बचें जाता है तो क्या कहता है ? रुग्णावस्था में जो अनेक प्रकार का दुःख भोगना पेड़ा था, उससे छूट जाने की खुशी मनाता है और उस खुशी में अपना सकल्प भूल जाता है। आप एक नाव में बैठे हों और तूफान आने पर नाव डगमगाने लगे तब क्या कहते है ? 'हे प्रभु ! मुझे बचाओ । हे शासन-देव मेरी रक्षा करो। हे चक्रेश्वरी माता ! मुझे उबारने दौड़कर आओ। हे पद्मावती माता | इस तूफान को शान्त कर दो।' आदि। लेकिन, तूफान निकल जाने के बाद आप उम सबको कितना याद करते है ? दो-चार बार नाम लेना याद करना नहीं कहलाता । दिल में लगातार उनकी रट चले तब 'याद किया' कहलाये । इस नरह बाट कितनी बार करते हैं ?
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy