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________________ आत्मा एक महान प्रवासी ४१ था। उनसे मालम हुआ कि ८६५७ की बस्ती में मात्र ४८०१ स्त्री-पुरुष धर्म-शिक्षण प्राप्त है, और उनने भी ६६४ पुरुष और ४०७ स्त्रियाँ टो प्रतिक्रमण तक नहीं पहुॅचे। बाकी ने मात्र नमस्कार मंत्र सीख कर ही सतोप मान लिया है । जैन कुल में जन्मे हुये की यह दद्या । जैन- कुल मे जन्मे हुये की अपने धर्म पर कैसी श्रद्धा होनी चाहिए, सो नुने । धर्मश्रद्धा पर मंत्री का दृष्टान्त एक राजा का मंत्री जैन - कुल में जन्मा था । और जिनेश्वर देव का पक्का भक्त था । वह न्यायनीति से चलता, सदाचार का पालन करता और हर एक की भलाई करने में तत्पर रहता । राजा की स्थिति इससे भिन्न थी । उसे धर्म पर प्रीति नहीं थी, चल्कि कुछ द्वेष था और इसलिए मंत्री का धर्मनिष्ठ जीवन उसे पसन्द नहीं था | पर, मंत्री अपने कामकाज में बडा कुगल था । वह अपराधी न ठहरे तब तक राजा उसे क्या कह सकता था 2 एक बार चौटम का दिन आया, तो मन्त्री ने गुरु से 'पोपट' लिया और वह अपना समय धर्मध्यान में गुजारने लगा । इधर दरवार मे मंत्री की जरूरत पड़ी, पर मत्री गैरहाजिर । राजा ने मंत्री को बुला लाने के लिए सिपाही भेजे । सिपाही मंत्री के घर आये । मालम हुआ कि, मत्री तो गुरुदेव के पास पोपह में हैं, इसलिए सिपाही वहाँ पहुँचे और सन्देश दिया - " राजा आपको बुलाता है ।" सामान्य लोग राजा के बुलावे को टाले नहीं और पोपह छोड़ कर राज दरबार में दौडे जाये, मन को समझा लें कि 'पोपट' आज की बजाय कल कर लेंगे, अगली पर्व- तिथि को कर लेंगे, राजा के कैसे कर सकते है ? अनादर करेंगे तो भूखे मरेगे अथवा पर, मंत्री ऐसे विचार का नहीं था । उसका हृदय धर्म के रंगा हुआ था, इसलिए वह मानता था कि, पहले धर्म, फिर राज-सेवा 1 रंग में पूरी तरह हुक्म का अनादर जान से जायेंगे ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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