SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० श्रात्मतत्व-विचार एक हजार भारके के लोहे के गोले को ऊपर से जोर से फेका जाये और वह नीचे गिरता हुआ ६ महीने, ६ दिन, ६ पहर, ६ बडी और ६ समय नें जितनी दूरी पार करे उस एक 'रज्जु' कहते है । इस मापको सुनकर मडक न जाइये । आज के आकाशीय अन्तर बताने के लिए ऐसी ही उपमानो का इससे भी बडे उपमानो का आश्रय लिया है । पर, यह बात तो आत्मा के एक ही प्रवास की हुई । ऐसे प्रवास तो उसने आज तक अनन्त बार किये हैं । शास्त्रकार भगवत कहते हैं खगोल शास्त्र ने भो प्रयोग किया है या न सा जाईन सा जोणी, न तं ठाणं न तं कुलं । न जाया न सुश्रा जत्थ, सव्वे जीवा श्रणंतसो ॥ इस लोक मे चौदह राजप्रमाण विश्व मे ऐसी कोई जाति नहीं है, ऐसी कोई योनि नहीं है, ऐसा कोई स्थान नहीं है और ऐसा कोई कुल नहीं है कि जहाँ सब जीव अनन्त बार जन्मे और मरे न हो । इस प्रवास के ऑकडे कौन बता सकता है ? एक लाख मील कागज की पट्टी हो तो भी वह छोटी ही पडे । तात्पर्य यह है कि आत्मा एक अकल्पनीय महान प्रवासी है और उसके प्रवास का कोई माप नहीं है । 11 लखचौरासी का फेरा जन्म धारण करने के क्षेत्र को, स्थान को, 'योनि' कहते है । उनकी सख्या चौरासी लाख होने के कारण यह ससार 'लखचोरासी का फेरा' कहलाता है। मतलब यह कि आत्मा अपने किये हुए कमो के कारण इन चौरासी लाख योनियो में बारबार जन्म लेता रहता है । बहुत-से लोग इन चौरासी लाख योनियो के नाम न जानते होंगे, क्योकि यह विषय टो प्रतिक्रमण में आता है और दो प्रतिक्रमण तक पहुँचने वाले बहुत कम है । हाल ही में बम्बई की एक जाति के ऑकड़े छपे थे। उसके कार्यकर्ता चतुर थे, इसलिए उसमे धार्मिक शिक्षण का भी एक खाना रखा
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy