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________________ ६६६ आत्मतत्व-विचार प्रतिज्ञा लेते समय कुछ आगार अथवा छूटे, रखी जाती हैं। इससे ग्रहण की हुई प्रतिजा का भंग नहीं होता। सम्यक्त्व के ६ आगार इस प्रकार हैं: (१) राजाभियोग यानी अन्तर की इच्छा न हो, पर राजा की आज्ञा से काम करना पड़े तो सम्यक्त्व का भंग नहीं होता। (२) गणाभियोग यानी अन्तर की इच्छा न हो, मगर गण यानी लोक-समूह के आग्रह से कोई काम करना पडे तो सम्यक्त्व का भग नहीं होता। (३) बलाभियोग यानी अन्तर की इच्छा न हो, पर किसी अधिक बलवान की इच्छा से कोई काम करना पडे तो सम्यक्त्व का भंग नहीं होता। (४) देवाभियोग यानी अन्तर की इच्छा न हो, पर देव के हठाग्रह से कोई काम करना पड़े तो सम्यक्त्व का भंग नहीं होता। (५) गुरुनिग्रह यानी अन्तर की इच्छा न हो, पर माता, पिता, कुलाचार्य आदि के दबाव से कोई काम करना पड़े तो सम्यक्त्व का भग नहीं होता। (६) वृत्तिकातर यानी आजीविका की पराधीनतावश शुद्ध धर्म से प्रतिकूल विवश होकर कोई प्रवृत्ति करनी पड़े तो सम्यक्त्व का भग नहीं होता। ६ भावनाएँ सम्यक्त्व को पुष्ट करने के लिए ६ प्रकार की भावना भाना आवश्यक है। (१) सम्यक्त्व चारित्रधर्म रूपी वृक्ष का मूल है, ऐसा चितन करना प्रथम भावना है। मूल हरा और रसयुक्त रहे तो वृक्ष फूलता-फलता है, उसी तरह सम्यक्त्व दृढ हो तो चारित्र-रूपी वृक्ष फूलता फलता है, यह विचार इस भावना से दृढ करना है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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