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________________ सम्यक्त्व सम्यक्त्व के लक्षणो का यह क्रम प्रधानता के अनुसार है । उत्पत्ति के क्रम से विचार करें तो आस्तिक्य पहला, अनुकम्पा दूसरा, निर्वेद तीसरा, -सवेग चौथा और गम पाँचवा है। सम्यक्त्व के साथ ही तत्त्वार्थ में श्रद्धा उत्पन्न होती है, वही आस्तिक्य है। आस्तिक्य के आते ही आत्मा सबके प्रति दयावान हो जाती है । इस प्रकार आत्मा स्वदया और भावदया में रमने लगा कि, उसे भवभ्रमण के प्रति अत्यन्त खेद उत्पन्न हो जाता है और वही निर्वेद है। ऐसे निवेदवान् आत्मा को जीवन में केवल एक ही अभिलाषा रहती है और वह मोक्ष की । जहाँ केवल मोक्ष की अभिलाषा ही वर्तती हो, वहाँ कषायों की जडे अपने आप ढीली पड़ जाती है और गम का साम्राज्य छा जाता है। ६ यतनाएँ - सम्यक्त्वधारी को किस वस्तु में प्रयत्नशील रहना चाहिए, इसका विवेचन भी शास्त्रों में अच्छी तरह हुआ है। शास्त्रकार भगवत कहते है कि, सम्यक्त्वधारी को ६ प्रकार की यतना करनी चाहिए, अर्थात् ६ बातों में प्रयत्नशील रहना चाहिए (१-२) परतीथिक को, उसके देवो और उनके ग्रहण किये हुए चैत्यों को वन्दन नहीं करना, और न उन्हे पूजना ।। (३-४) परतीर्थिक को, उसके देवों को, उसके ग्रहण किये हुए चैत्यों को सुपात्र बुद्धि से दान नहीं देना तथा अनुप्रदान नहीं करना, यानी भेंट आदि न चढाना। (५-६ ) परतीथिक के बुलाये बिना प्रथम ही उसके साथ बोलना नहीं और न उसके साथ लम्बा वार्तालाप करना । ६ आगार जैसे कानून बनाते समय उसके अपवाद रखे जाते है, उसी प्रकार
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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