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________________ सम्यक्त्व पास आते है, वैसे सुपात्र-दान से शील आदि शेष धर्म प्रकार मी आत्मा के समीप आते हैं।" "अगर दान सुपात्र को दिया गया हो, तो वह धर्मोत्पत्ति का कारण बनता है, अगर अन्य को दिया गया हो तो करुणा की कीर्ति को प्रकाशित करता है। अगर मित्र को दिया गया हो तो प्रीति को बढ़ाता है। अगर शत्रु को दिया गया हो तो वैर का नाश करता है; अगर नौकर-चाकर को दिया गया हो तो उनकी सेवावृत्तिको उत्कट बनाता है। अगर राजा को दिया गया हो तो सम्मान और पूजा की प्राप्ति कराता है और अगर चारण-भाट को दिया गया हो तो यश को फैलाता है । इस प्रकार किसी भी जगह दिया गया दान निष्फल नहीं जाता। ___"दान से धन का नाश नहीं होता; बल्कि वृद्धि होती है। इसीलिए कहा है. जो दीजे कर पापणे, ते पामो परलोय । दीजंता धन नीपजे, कूप वहंतो जोय ॥ -हम जो अपने हाथ से देते हैं, वही परभव में पाते हैं। कुँआ अपना पानी निरन्तर देता रहता है, तो उसमें नया पानी भी निरन्तर आता रहता है। इस तरह नित्य धर्मश्रवण करता हुआ, धन-सार्थवाह धर्म-मार्ग में दृढ श्रद्धावन्त हुआ और यथाशक्ति धर्म का आराधन करने लगा। वर्षा-ऋतु पूरी हो जाने पर और मार्ग सरल हो जाने पर वह सब साथियों के साथ वसन्तपुर पहुंचा और किराने के क्रय-विक्रय से बहुत-सा धन कमाया। यहाँ से श्री धर्मघोष आचार्य अन्यत्र विहार कर गये और अपनी पतितपावनी देशना द्वारा पृथ्वी को पावन करने लगे। कालान्तर में धन-सार्थवाह क्षितिप्रतिष्ठित नगर में वापस आया और धर्म-संस्कारों को दृढ करता हुआ अनुक्रम से कालधर्म को प्राप्त हुआ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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