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________________ श्रात्मतत्व-विचार हितोपदेश नामक प्रसिद्ध नीतिग्रन्थ में कहा है-— कि 'अपुत्रस्य गृहं शून्यं, सन्मित्ररहितस्य च जिसके पुत्र नहीं है उसका घर शून्य है; जिसके सन्मित्त नहीं है उसका भी घर शून्य है।' यहाँ सन्मित्र शब्द पर विशेष ध्यान दीजिए, कारण कि इस जगत् में मित्रता का ढोंग करके धोखा देनेवाले तथा स्वार्थ के कारण मित्रता करनेवाले बहुत होते हैं। जो कि स्वार्थ के लिए मित्रता करता है, वह अपना स्वार्थ पूर्ण करते की अलग हो न कहा ना हो । जाता है और ऐसा व्यवहार करने लगते हैं; ऐमो को सन्मित्र नहीं कहा जा सकता । सकता है, जो स्नेह करें, हमारे दुःख से पूरी-पूरी सहायता करें | इस सम्बन्ध में, वार्ता कही है, वह जानने लायक है । मानो पहचानता भी सन्मित्र तो उन्हीं को दुःखी हों और सकट के समय पंचतत्रकार ने चार मित्रो की ६२४' चार मित्रों की वार्ता गोदावरी नदी के किनारे एक सेमल का पेड़ था । उस पर लघुपतनकनामक एक कौआ रहता था । एक दिन सुबह ही सुबह उसने एक शिकारी को देखा । वह विचार करने लगा कि, 'आज उठते ही इस कलमुँहे का मुँह देखा है, इसलिए दिन खराव जायेगा ।' शिकारी ने चावल के दाने बखेरे, जाल बिछाया और झाड़ी में छिपकर बैठ गया । आकाश में उड़ते कबूतरों ने वे दाने देखे और नीचे उतरकर चुगने का विचार करने लगे । तत्र उनके वयोवृद्ध नायक चित्रग्रीव ने कहा कि, 'भाइयो ! जो काम करो, विचार कर करो। इस निर्जन वन मे अनान कहाँ से आ सकता है ? मुझे कुछ दाल में काला नजर आता है ।' परन्तु, जवान कबूतरो के गले यह बात नहीं उतरी। वे तो दूध से उजले उन चावलो के दानों को चुग ही लेना चाहते थे । वे नीचे उतरे । दानों को चुगने गये कि जाल में फॅस गये ! अब क्या हो ? वे आपस मे अनेक प्रकार का तर्क-वितर्क करने लगे । तत्र चित्रग्रीव ने कहा
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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