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________________ ६०८ आत्मतत्व-विचार विभूपित, उसमे भी एकान्त का योग और फिर स्वय रानी की इच्छा ! ये सब वस्तुएँ सामान्य मनुष्य का पतन करने के लिए काफी हैं, लेकिन वंकचूल ने नियम की रक्षार्थ दृढतापूर्वक इनकार कर दिया । अपनी माँग का इनकार देखकर रानी ने शोर मचाना शुरू कर दिया। देखते-देखते अनेक राजसेवक आ पहुँचे । उन्होने बकचूल को पकड लिया और सुबह राजा के सामने पेश किया। कोतवाल ने कहा-"महाराज! इस दुष्ट ने राजमहल में दाखिल होकर अन्तःपुर में पहुँचकर रानी साहिबा से छेड़खानी की है; इसलिए इसे उचित दंड दिया जाये ? इस शिकायत पर प्राणदड से कम क्या मिलता, पर बंकचूल के प्रवेश के समय राजा जाग गया था और दीवाल के सहारे खड़ा होकर सब कुछ देख रहा था । राजा ने हुक्म किया-"इस चोर को बधन-मुक्त कर दो।" और, बकचूल से कहा-'तुमने एक महापुरुष-जैसा बर्ताव किया है, यह मैने स्वय अपनी आँखों से देखा है । मैं तुम्हें अपना सामत बनाता हूँ।" बंकचूल यह सुनकर दंग रह गया ! जबकि, सर पर मौत मॅडरा रही थी, उस समय सामन्त-पद | इसे उसने नियमपालन का चमत्कार माना!, धीरे-धीरे बंकचूल राजा का प्रियपात्र बन गया और राजा के चारों हाथ उस पर रहने लगे। एक दिन बंकचूल बीमार पड़ा और वह बीमारी बढ़ती ही चली गयी । बहुत-से उपाय करने पर भी वह मिटी नहीं । अन्त में राजा ने ढिंढोरा पिटवाया कि, जो कोई बकचूल की बीमारी मिटा टेगा उसे बड़ा इनाम मिलेगा! एक वृद्ध वैद्य ने आकार उसे जॉचकर कहा-'अगर इसे कौवे का मास खिलाया जाये, तो यह अच्छा हो जायेगा।" . बकचूल ने कहा-"जान कल जाती हो तो आज चली जाय: पर मैं कौवे का मास हर्गिज नहीं खा सकता।" राजा उसकी नियम-दृढता देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ और उसकी
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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