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________________ धर्म के प्रकार ६०५ तो समझपूर्वक बड़े नियम लेने से कितना लाभ होगा ! इसलिए अगर वह महात्मा फिर गाँव में आयें तो उनसे दूसरे बड़े नियम लिये जायें । कुछ दिनो बाद वह महात्मा घूमते-फिरते उम गाँव में आये । वणिकपुत्र ने सारी बात कह सुनायी और बड़े नियमो की मॉग की । उस समय महात्मा ने कहा - " सबसे बड़े और सुन्दर नियम तो पॉच महाव्रत हो हैं । उनका निरतिचार पालन करने से मनुष्य अनन्त सुख की प्राप्ति कर सकता है।' वणिक्पुत्र ने पॉच महाव्रत ले लिए और उनका निरतिचार पालन करना प्रारम्भ कर दिया । उस व्रत पालन के फलस्वरूप वह मरने के बाद बारहवें स्वर्ग में एक महर्द्धिक देव हुआ । चार विचित्र नियम ज्ञानतुंग नामक एक आचार्य अपने शिष्य के साथ, विहार करते हुए, एक पल्ली के सामने आ पहुॅचे। बरसात शुरू हो गयी थी, इसलिए उन्होंने वहीं रुकने का विचार किया । बकचूल नामक एक क्षत्रिय पुत्र उस पल्ली का नायक था । वह चोरी और डाके से ही अपना निर्वाह करता था। उसने उन्हें ठहरने का स्थान तो दे दिया, पर इस शर्त पर कि, जब तक उसकी हद में रहें तब तक किसी को धर्मोपदेश न करें। उसे डर था कि, कहीं उपदेश सुनकर उसके साथी चोरी-डाके का त्याग न कर दें । आचार्य ने शर्त मजूर कर ली और चातुर्मास वहीं पूर्ण किया । ये आचार्य बड़े ज्ञानी और तपस्वी थे । उनके थोड़े सहवास से ही बकचूल के दिल में उनके प्रति मान उत्पन्न हो गया था, इसलिए विहार करते समय उन्हें विदाई देने के लिए वह सकुटुम्ब उनके साथ चला । उसकी सीमा के बाहर पहुॅच जाने पर, आचार्य ने कहा - " अब तक हम वचन से बँधे हुए थे, इसलिए धर्मोपदेश नहीं किया था । पर, अब तेरे हित के लिए कहते हैं कि, तू कुछ नियम धारण कर ।' बकचूल के स्वीकार करने पर आचार्य ने उसे चार नियम दिये - ( १ ) अजाना फल
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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