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________________ ५६५ धर्म के प्रकार पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥' ये पद आते हैं । यहाँ पंच परमेष्ठी को किये जानेवाले नमस्कार को धर्म दर्शाया है । इस धर्म को सर्व पाप-प्रणाशक और सर्व मगलो मे उत्कृष्ट मंगल कहा है । वह इसकी स्तुतिरूप वन्दना है; इसलिए धर्म मूलभूत वस्तु है । नमस्कार मंत्र के प्रथम पद मे अरिहतदेव ( तीर्थकरों ) को नमस्कार किया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि, वे धर्मप्रवर्तन करते है । फिर आचार्य, उपाध्याय और साधु भगवंतों को तीसरे, चौथे और पाँचवें पद में वन्दन किया गया है; इसका कारण यह है कि, वे भाविको को धर्मलाभ कराते हैं । इस प्रकार नमस्कार मंत्र में धर्म ओतप्रोत है । अतः, मानना पड़ेगा कि, नमस्कार मंत्र में धर्म ही मुख्य मूलभूत वस्तु है । प्रश्न – यहाँ, पहले, तीसरे और चौथे पद मे नमस्कार का सम्बध आपने धर्म से प्रदर्शित किया पर दूसरे पद का धर्म से कोई सम्बन्ध आपने नहीं बताया | फिर आप कैसे कह सकते हैं कि, नमस्कार मंत्र में धर्म ओतप्रोत है ? उत्तर -- दूसरे पद में सिद्ध भगवतों को नमस्कार किया गया है । वे धर्माराधन से प्राप्त मोक्ष के साक्षी है। सिद्ध भगवत उत्कृष्ट धर्माराधन से अपने सब कर्मों का नाश करके मोक्ष प्राप्त करनेवाले शुद्धात्मा हैं । अतः, उनका नमस्कार भी धर्म-प्रबोधक है । प्रश्न - "अभी भी एक प्रश्न पूछना है ?" उत्तर - " पूछिये ?” प्रश्न—“एक बार आपने धर्म की परिभाषा बताते हुए कहा कि, जो रखे और स्वर्गादि उच्च गति में स्थापित कि, पच परमेष्ठी को नमस्कार करना धर्म दुर्गति में पड़ते प्राणी को रोक करे वह धर्म और अत्र कहते हैं है, तो इन दो में से कौन-सी बात सच है ? उत्तर - दोनो सत्य हैं । प्राणियो को दुर्गति में गिरने से धारण किये
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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