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________________ ५७० श्रात्मतत्व-विचार लुन्धक ने उत्तर दिया- "मुझे प्रभु अथवा दान-पुण्य की आवश्यकता नहीं है ! यदि तुम मेरे सच्चे पुत्र हो तो मेरी यह इच्छा पूर्ण करो। " पिता के हठ के ऊपर पुत्रों को झुकना पड़ा । उन लोगों ने बात स्वीकार कर ली । लुब्धक बोला - "इस दृष्टि से जो मैं कहूँ, उसे करो | अन्य कुछ करने की आवश्यकता नहीं है । तुम लोग मेरी लाश को तुंगभद्र के खेत मे रख आना और गोर मचाना कि, उसने मुझे मार डाला है । शोर मचाने पर राजकर्मचारी आयेंगे और वह दण्डित होगा । " पुत्रों ने स्वीकार कर लिया और लुब्धक ने अतिम साँस ली । बाद में पुत्रो ने क्या किया और उसका क्या परिणाम रहा, यह एक लम्बी कथा है और यहाँ कहने की आवश्यकता नहीं है । यहाँ तो कहने का तात्पर्य यह कि, मनुष्य जो प्रकृत्या अति दुष्ट हो, वह जीवन में धर्मं प्राप्त नहीं कर सकता । मूढ़ता पर भूतमति का दृष्टान्त कठापुर-नामक एक गाँव था । उसमें भूतमति नामक एक ब्राह्मण रहता था । यह ब्राह्मण काशी जाकर विद्याभ्यास कर आया था। पर, निर्धन होने के कारण बड़ी अधिक उम्र तक उसका विवाह नहीं हुआ । एकपाठशाला चलाकर वह अपना निर्वाह करता । एक बार यनमानों ने उसे विवाह करने के लिए एकत्र करके धन दिया । उस पैसे से उसने यज्ञदत्ता-नामक एक सुन्दर ब्राह्मणी से विवाह कर लिया । भूतमति की पाठशाला में बहुत-से विद्यार्थी अन्य ग्रामों से आकर पढ़ते थे । इसी प्रकार का देवदत्त नामक एक विद्यार्थी बाहर से आकर पढता था । वह बड़ा निर्धन था, इसलिए भूतमति ने उसके भोजन - पानी को व्यवस्था अपने घर में कर दिया। और उसे सोने-बैठने के लिए घर से बाहर एक बाराम्दा बनवा दिया |
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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