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________________ E धर्म का आराधन कर्त्तव्याकर्त्तव्य का ज्ञान न होने से लगभग सारा समय खेलकुद में नए हो जाता है । पूर्व भव की किसी सस्कारी आत्मा को उस समय धर्म करने का विचार आता है, तो माता-पिता मोहवा उसके धर्माराधन में बाधक हो उठते हैं । बाल्यकाल में किसी पुण्यगाली आत्मा की दीक्षा लेने की भावना होती है, तो तुरत शोर मचने लगता है - "आठनौ वर्ष के बालक को दीआ कैसे दी जा सकती है ? जब पढ लिख कर अठारह वर्ष का होगा, तत्र दीक्षा लेने की भावना होगी तो दी जा सकती है ।" बालदीक्षा के विरुद्ध बड़ौदा राज्य में पहले एक 'बिल' उपस्थित किया गया था । उसके कानून बन जाने पर बड़ौदा सरकार ने वाल- दीक्षा पर रोक लगा दी थी । पर, बड़ौदा - राज्य के विलय के साथ ही यह कानून भी समाप्त हो गया । उसके बाद अहमदाबाद के प्रभुदास बालूभाई ' एक 'विल' बम्बई की धारा-सभा में उपस्थित किया। सम्मुख कैसा प्रबल विरोध हुआ, यह आप जानते ही होंगे। वह 'बिल' लोकमत जानने के लिए वितरित किया गया और उसके विरुद्ध इतने मत आये कि, 'बिल' सरकार की सलाह से समाप्त हो गया । पटवारी ने ऐसा ही उस समय उसके फिर, पंजाब के दीवानचन्द्र शर्मा ने इसे लोकसभा में उपस्थित किया, वहाँ पक्ष-विपक्ष में बहुत-कुछ कहा गया और अन्त में यह निश्चित हुआ कि, बाल-दीक्षा रोकने के लिए फिलहाल किसी कानून की अपेक्षा नहीं है । इस प्रकार यह 'बिल' रद्द कर दिया गया । शास्त्र में आठ वर्ष से कम उम्रवाले को दीक्षा देने की मनहाई की गयी है, कारण कि उससे दीक्षा का यथार्थ पालन नहीं हो सकता । लेकिन, आठ वर्ष की उम्र का चालक दीक्षा के लायक लगे तो उसे दीक्षा देने की मनहाई नहीं है । जिन शासन में ऐसी अनेक दीक्षायें हुई हैं । श्री हेम ३६
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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