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________________ धर्म की शक्ति ५३१ तो सदा विजयी को ही स्मरण करता रहा है । धारा-सभा की सदस्यता के लिए निर्वाचन-सघर्ष होता है। उसका जन प्रतिफल बाहर निकलता है, तो आप जीते हुए उम्मीदवार का स्वागत-सत्कार करते हैं, या हारे हुए का ? पार्टियाँ जीते हुए के सम्मान में होती हैं, या हारे हुए के ? अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि, यदि धर्म में इतनी अद्भुत् शक्ति है, तो अनन्त आत्माएँ इस प्रकार धक्के क्यों खा रही हैं ? आज तक उन्होंने मोक्ष क्यों नहीं प्राप्त किया ? इसका उत्तर यह है कि, इस जगत में लोहा भी है और उसे सोना बनानेवाला पारस भी है। पर, सब लोहा सोना तो नहीं बन गया ? इसका कारण है कि, लोहे को पारस का सम्पर्क ही नहीं हुआ। यदि सम्पर्क हो तो लोहा सोना बन जाये! यही बात आप आत्माओं के भी साथ समझ लें । आत्मा को धर्म का अपेक्षित सम्पर्क न प्राप्त होने से आत्माएँ इस जगत में धक्के खाया करती हैं। यदि आत्मा का धर्म से उस प्रकार का सम्पर्क हो जाये, जैसा अपेक्षित है तो निश्चय हो आत्मा जगत से मुक्त होकर मोक्ष-पद प्राप्त कर ले । बम्बई के बैंकों में करोड़ों रुपये पड़े हैं, पर बम्बई में ही मनुष्य दारिद्रय का भोग करता मिलेगा और मेहनत-मजदूरी करके पेट भरता मिलेगा। इसका क्या कारण है ? इसका कारण है कि, वह इस रुपये का मालिक नहीं है अथवा यह कहें कि, इस रुपये के मालिक होने का अधिकार उसे प्रास नहीं है । यदि वह एन-केन-प्रकारेण यह अधिकार प्रात कर ले तो निश्चय ही उसकी तग। जाती रहेगी और वह श्रीमन्त बन जायेगा । यही बात धर्म के सम्बन्ध मे भी है । ज्ञानियों द्वारा वर्णित धर्म की सत्ता इस जगत में है-देर केवल इस बात की है कि आप उस पर अधिकार प्राप्त कर लें। ___ लाठी के प्रयोग से शत्रु दूर रखा जा सकता है और अपना बचाव भी किया जा सकता है। पर, यदि वह लाठी अपने से दस-बीस हाथ दूरी पर
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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