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________________ ५०० प्रात्मतत्वविचार जाता और राजा के थाल में परोसे हुए भोजन को खा नाता। राना की उत्तम रसोई का उसे चटखारा लग गया था। राना दिन-प्रतिदिन दुबला होता गया । एक दिन मत्री ने कहा"महाराज! आप रोज-ब-रोन दुबले होते जा रहे हैं। क्या आपको कोई __ गुप्त रोग है ? या भोजन अच्छा नहीं लगता? या भूख ठीक नहीं लाती ? जो कारण हो दिल खोलकर बतायें, ताकि उसका उपाय किया ना सके !" राजा ने कहा-"बात कहते मुझे लजा लगती है ?" मंत्री बोला--"शरीर के सम्बन्ध में शरम रखना अथवा उपेक्षा करना योग्य नहीं है। शरीर है तो सब कुछ है। आप नि.सकोच बतायें । अनुरोध किये जाने पर राजा ने कहा-"मंत्रीश्वर ! मुझे कोई गुप्त रोग नहीं है; पर जो भोजन मुझे परोसा जाता है, वह पूरा मेरे पेट में नहीं ला पाता । भरे थाल में से कुछ ही ग्रास लेता हूँ कि थाल खाली हो जाता है । फिर रसोइये से बार-बार माँगने मे मुझे शर्म आती है। इसलिए, पोषण के अभाव से मेरा शरीर दुर्बल होता जा रहा है।" ___मंत्री ने कहा-"महाराज ! अगर आपके दुबले होने का यही कारण है तो मै इसका उपाय जरूर करूँगा।" ____गहरा विचार करने पर मत्री इस निर्णय पर आया कि, जरूर कोई अंजन यादि के प्रयोग से अदृश्य होकर आता है और वह राजा के थाल का परोसा हुआ खा जाता है। उसे जरूर पकड़ना चाहिए ! अदृश्य पुरुष को पकड़ने का काम आसान नहीं है; पर मंत्री महाबुद्धिमान था, उसने उसे पकड़ने की योजना बनायी। राजा के भोजनखंड में नाने के रास्ते पर उसने सूक्ष्म रज बिछवा दी और नौकरों को हुक्म किया कि इशारा पाते ही भोजनखंड के तमाम दरवाजे बन्द कर दिये जायें । फिर वह त्वय मोननखंड में एक जगह बैठ गया और घटनावलि का अवलोकन करने लगा।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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