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________________ पहा लाख 61, एम ०ए० बी-८, नई : माज मण्डी चाँदपोत, जयपुर-१ दूसरा व्याख्यान आत्मा देह आदि से भिन्न है महानुभावो ! श्रुतस्थविर भगवन्त ने श्री उत्तराध्ययन-मूत्र के छत्तीसवें अध्ययन की २५८-वी गाथा में अल्प-संसारी आत्मा का जो वर्णन किया है, उस प्रसग मे 'आत्मा' का विषय चल रहा है। किसी भी वस्तु का अस्तित्व दो तरह से जाना जा सकता है-एक उसे दृष्टि से देखकर और दूसरे उसके कार्यों को देखकर । इनमें 'आत्मा' का अस्तित्व उसके कार्य देखने से जाना जा सकता है। यह बात पिछले व्याख्यान में अनेक उदाहरणो और तकी द्वारा समझायी गयी है और मै मानता हूँ कि वह आपके समझ में आ गयी होगी। 'आत्मा है', यह तो आप पहले भी मानते रहे होंगे, लेकिन किसी के पूछने पर समाधान नहीं कर सकते थे, परन्तु आगा है अब तो आप औरो का समाधान भी कर सकेंगे ? . इस श्रोतावर्ग में से बहुतो के लड़के-लड़कियॉ स्कूल और कालेज मे पढते होगे। उन्हें वहाँ जो शिक्षण दिया जाता है, उसमें 'धर्म' का विषय नहीं पढाया जाता । कितनी ही शिक्षा-सस्थाओ में पढाया जाता था, मगर सरकार ने बन्द कर दिया । ऐसी परिस्थिति में वे 'आत्मा', 'कर्म' या 'वर्म-सम्बन्धी बातें कैसे जान सकते है ? उन्हें दो घडी अपने पास बिठाकर आत्मा-सम्बन्धी बात करना और यहाँ जो कुछ कहा गया है, उसे उन्हे ममझाने का प्रयास करना । 'फुरसत नहीं है, क्या करें ?' ऐमा कहकर न छूट जाना । स्वजनो को 'धर्म' का उपदेश करना श्रावक का कर्तव्य है,
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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