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________________ अट्ठाईसवाँ व्याख्यान कर्मवन्ध और उसके कारणों पर विचार [३] महानुभावो। ____ कर्मबन्ध और उसके कारणों की सामान्य विचारणा चल रही है। कर्मबन्ध के सम्बन्ध में कितनी ही बातों पर विचार किया जा चुका है। आज की बात पहले से सर्वथा भिन्न है। अतः आज उसके सम्बन्ध में विशेष बातें कहनी है। शिक्षण का यह क्रम है कि, पहले सामान्य बात कही जाये और फिर विशेष । मैंने भी इसी क्रम का अनुसरण किया है। ___ बात कुछ लम्बी हो गयी, पर बात का लम्बा होना आवश्यक था। यदि ऐसा न होता तो कर्मबन्ध-सम्बन्धी बात आपकी समझ में इतनी दृढता से न आ पाती। जब कर्म के विषय में जानकरी प्राप्त करने चले तो उसका मुख्य उद्देश्य कर्म के स्वरूप को समझना, उसके बन्ध के स्वरूप समझना और उनका कारण जान कर कर्मबध से दूर रहना है। 'कर्म को हल्का बाँधना, यह बात तो अनेक बार कही जा चुकी है। पर, किस क्रिया से किस प्रकार का कर्मबन्ध होता है, इसे जाने बिना कर्मबन्ध-सम्बन्धी जानकारी अधूरी ही रह जायेगी। यदि किसी चीज को व्यक्ति पूरा-पूरा जानता हो तभी वह उसमे से हेय वस्तु का त्याग अथवा उपादेय का ग्रहण कर सकता है। एक विख्यात् सूत्र है-'पढम ज्ञानं तनो दया', इसमें भी जान का अग पहले आता है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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