SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 492
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ કષ્ટ श्रात्मतत्व- विचार यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि, तेरहवे गुणस्थान में योग रहते है मगर फिर भी शाति रहती है, कारण कि अशांति का मूल कषाय है और कपाय का वहाँ अभाव है । तेरहवें गुणस्थान का नाम 'सयोग केवली' है । वहाँ वीतरागता होती है, केवलज्ञान होता है; पर योग की प्रवृत्ति चलती रहती है । वह तो चौदहवें गुणस्थान - 'अयोग केवली' - में ही बन्द होती है और फिर कभी पुनर्जीवित नहीं होती । चौदहवाँ गुणस्थान आत्मविकास की चरम सीमा है और उसे प्राप्त हुए जीव अपने ऊर्ध्वगमन स्वभाव के कारण सिद्धशिला पर पहुँच जाते हैं और फिर सदाकाल वहीं विराजे रहते हैं । विशेष अवसर पर कहा जायगा । -----
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy