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________________ कर्मवन्ध और उसके कारणों पर विचार ४०७ जा सकती, तो हजारों आदमी मारे जा सकते थे । भिखारी कहीं से एक रस्सा ले आया और फंदा डाल कर गिला को खींचने लगा । उसने बड़ा जोर लगाया, पर गिला टस-से-मस न हुई। क्रोध के आवेश मे उसने जो और ज्यादा जोर लगाया तो उसका पैर फिसल गया, खोपड़ी फट गयी, मर गया और सातवें नरक में पैदा हुआ। उस भिखारी ने वास्तव में किसी को मारा नहीं था, लेकिन उसकी भावना-वृत्ति-सबको मार डालने की थी। इसलिए, उसने घोर कर्मबन्धन बाँधे और सातवें नरक-जैसी निकृष्ट गति को प्राप्त हुआ। इसीलिए पापवृत्ति छोडने का उपदेश है। . अठारह पाप-स्थानक पापवृत्ति मे से पाप-क्रिया पैदा होती है और वह असंख्य प्रकार की होती है। लेकिन, व्यवहार की सरलता के लिए शास्त्रकारों ने उसके अठारह प्रकार किये हैं-यानी अठारह पापस्थानको में उनका समावेश हो जाता है वह इस प्रकार : (१) प्राणातिपात (हिंसा) (२) मृपावाद ( झूठ बोलना) (३) अदत्तादान (चोरी) (४) मैथुन (अब्रह्म) (५) परिग्रह ( ममत्वबुद्धि से वस्तुओ का संग्रह करना) (६) क्रोध (७) मान ( अहकार, अभिमान) (८) माया ( छल, कपट, टभ, पाखड, धोखा, फरेब ) (९) लोभ ( तृष्णा) (१०) राग (प्रीति) (११) द्वेष ( अप्रीति ) .मग
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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