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________________ ३६८ आत्मतत्व-विचार उसने सेठ को अपना आधा राज्य दे दिया। प्रबल पुण्योदय के समय उत्टे काम भी सीधे पड़ते हैं। पुण्य की समाप्ति पर अगर पुण्य समात हो गया है, तो नो है सो भी चला जाता है । एक सेठ के पास छियासठ करोड़ मोहरें थीं। उसने उनका तिहाई भाग जमीन में दबा दिया, एक तिहाई भाग जहाजों के धधे मे लगाया और शेष व्यापार में एक दिन खबर आयी कि, सब जहाज डूब गये। जमीन खोदी तो उसमे से कोयले निकले और दुकान में उसी वक्त आग लग गयी, जिसमें व्यापार-सम्बन्धी सभी बहियाँ जल गयीं । पाप का उदय आने पर सब बर्बाद हो जाता है। ' पाप के उदय के समय पाप का उदय होने पर अनेक दुःख, कठिनाइयाँ और उलझनें आ घेरती हैं । तब आप घबराते हैं, हायतोवा करते हैं, रोने लगते है और उस स्थिति के लिए औरों को दोषपात्र गिनते हैं, पर यह क्यों नहीं सोचते कि, हाथ के किये की चोट दिल पर पड़ रही है ? आपके पूर्व कृत पापकर्मों के उदय में आने के कारण ही आपकी यह हालत हुई है। उसमें व्यक्ति तो निमित्तमात्र है। व्यक्ति के दोष निकालने और उसे उलाहने देने से क्या होगा ? रास्ता चलते अगर खभे से टकरा जाये तो क्या खंभे से लडने बैठते हैं ? आपने सावधानी न रखी इसीलिए उससे टक्कर हुई, उसी प्रकार पूर्वकाल में कर्म बाँधते वक्त सावधानी न रखी, इसीलिए व्यक्तियों के साथ टक्कर हुई । ' कभी नासमझी से पाप किया, तो उसके उदय में आने पर उसे समता से, गाति से, भोग लो। अगर उस समय घबराये या हायतोबा की, तो उस आत्त ध्यान से थोकवद कर्म बंधेगे और भविष्य की सलामती भी
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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