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________________ कर्म का उदय ३६५ 1 जा सकता था । सम्यक् दृष्टि आत्मा भी उसे देख कर कॅप जाये -- यह है, पाप कर्मों के उदय का परिणाम | सनातन नियम जिन शरीरादि के लिए जो हिंसादि पाप-कर्म किये जाते है, वे गारीरादि तो यहीं रह जाते है, मगर पाप कर्म साथ जाते हैं । वे किसीन-किसी भव में उदय में अवश्य आते हैं । इस जगत् में हमे पाप करनेवाला सुख और पुण्य (धर्म) करनेवाला दुःख भोगता भी दिखायी देता है—यह भो गत जन्मों में बाँधे हुए कर्मों का उदय है । वे गत जन्म में जैसे बाँधे हुए शुभ कर्मों के उदय से आज सुख भोगते हैं, वैसे ही इस जन्म में बाँधे हुए अशुभ कर्मों के उदय से दुःख भोगनेवाले हैं, और जो गत जन्मों में बाँधे हुए अशुभ कर्मों के उदय से आज दुःख भोग रहे हैं, वे इस जन्म में बाँधे हुए शुभ कर्मों के उदय आने पर निश्चय ही सुख भोगेंगे । अच्छाई का फल अच्छा और बुराई का फल बुरा होता है यह सनातन नियम है । इसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं होने वाला है ! प्रबल पुण्योदय पर सेठ की बात - 三 अगर शुभ कार्य का प्रबल उदय हो तो उसमे कोई बाधक नहीं बन सकता । एक सेठ था । उसे अपना भविष्य जानने की इच्छा हुई । वह ज्योतिषी के पास गया । ज्योतिषी ने कुडली देखकर कहा - "सेठजी ! आपके ग्रह बहुत अच्छे हैं, उल्टा डालो तो भी सीधा पड़े, ऐसा है !” ग्रह कुछ नहीं करते, वे तो मात्र सूचना देनेवाले हैं । करनेवाले तो पूर्व-कर्म हैं । सेठ समझ गया कि, उसके भाग्य का उदय है । इसलिए परीक्षा के लिए, राजा की सभा में गया । सबसे ज्यादा खतरा और कष्ट सह लेने का स्थान तो राजदरबार ही है न ! वह राजसभा में पहुँचा । राजा सिंहासन
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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