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________________ ३६४ श्रात्मतत्व-विचार भीख मांगनी पड़ी तथा सनत्कुमार-जैसे चक्रवर्ती को अनेक रोग भोगने पडे। आपके सामने की बात है हिटलर की क्या धाक थी ! लेकिन, आखिर क्या हालत हुई ! कभी चर्चिल को सुनने के लिए लाखो लोग आतुर रहते, आज वह सब आकर्षण समाप्त है ! वह सब कर्मों का प्रभाव है !! एक ही माता के पेट से जन्मे भाई सम्पत्ति के लिए लड़ते हैं, झगड़ते हैं, मुकदमाबानी करते हैं, एक दूसरे पर आक्रमण करते हैं। नियमित धधा करनेवाला सट्टा खेलने लगता है। और, उसमे पामाल हो जाता है और तब आबरू बचाने के लिए जहर पीता है। यह सब अशुभ कर्मों के उदय के ही कारण होता है। मृगापुत्र मृगापुत्र मृगावती रानी का पुत्र था। मगर, उसकी कैसी दुर्दशा हुई ! पूर्व भव में वह अनादि राठौर नामक राजा था । उसने मटाध होकर तीव्र पाप किये । अनेक प्रकार से हिंसा की, कर बढ़ाये, अनर्थ किये, अनाचारों का सेवन किया, लोगो को अकारण दडित किया, देवगुरु की निन्दा की और उनका प्रत्यनीक हुआ। परिणामतः मर कर वह नरक गया और वहाँ से निकलकर मृगापुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ । उसके हाथ नहीं थे, पैर नहीं थे, सिर्फ चिह्न थे! ऑखों के सिर्फ गड्ढे थे, मगर ऑखें नहीं थीं ! कानो की जगह भी चिन्ह मात्र थे ! वह न चल-फिर सकता था, न देख सकता था, और न सुन ही सकता था | मिट्टी के पिंड-सरीखा उसका शरीर था तो फिर प्रश्न था कि, उसे खिलाया कैसे जाये ? परन्तु उसकी माता दयालु थी। वह नित्य प्रवाही भोज्य तैयार करती और उसे पिंड पर गिरा देती वह रस अन्दर स्वतः जाता, फिर निकल आता और फिर उसे सोखता इस प्रकार मृगापत्र रस को चूसा करता! उसके शरीर से भयकर दुर्गन्ध आती थी। उसे देखा भी नहीं ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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