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________________ ३२२ आत्मतत्व-विचार एक के चार प्रकार हैं-तीव्रातितीव्र, तीव्र, मध्यम और गौण | इस तरह कपाय के १६ भेद है। शास्त्रीय परिभाषा में तीव्रातितीव्र कषाय को 'अनन्तानुबन्धी', तीव्र कषाय को 'अप्रत्याख्यानीय', मध्यम कषाय को 'प्रत्याख्यानीय' और गौण कषाय को 'संज्वलन' कहा जाता है । __इन सोलह कपायो का स्वरूप समझने के लिए शास्त्र में उदाहरण दिये हैं। क्रोध सज्वलन-पानी में खींची गयी रेखा के समान, जल्द मिट जाने वाला। प्रत्याख्यानीय-रेत मे खींची गयी रेखा के समान । रेत मे रेखा पड़ती तो है, पर पवन का झोका लगते ही स्वतः मिट जाती है। अप्रत्याख्यानीय-जमीन पर पड़ी हुई रेखा के समान । जमीन पर पड़ी रेखा बरसात आने पर समाप्त हो जाती है। अनतानुबन्धी-पर्वत पर पडी हुई रेखा के समान । वह नष्ट नहीं होता उसी प्रकार ऐसा क्रोध जीवन भर रहता है । मान सज्वलन–त के समान, आसानी से झुक जानेवाला । प्रतयाख्यानीय-काष्ठ के समान, जो उपाय से झुके । अप्रत्याख्यानीय–हड्डी के समान, जो बडे कष्ट से झुके । अनन्तानुबन्धी-पत्थर के खभे के समान, जो झुकता ही नहीं। माया सज्वलन-बॉस की छीलन-जैसी, जो कि आसानी से अपनी वक्रता छोड़ देती है। शास्त्र में सज्वलन की समय मर्यादा पद्रह दिन की, प्रत्याख्यान की चार मास की, अप्रत्याख्यान की एक वर्ष की और अनन्तानुबन्धी की यावज्जीवन नतायी हैं । देखिये कर्मग्रन्थ पहला, गाथा १८ ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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