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________________ ३०६ श्रात्मतत्व-विचार अनन्तकाल तक भव-भ्रमण करते हुए भयानक दुःखो का अनुभव करते हैं । उनमे जिनपालित-जैसे बच जाते है; लेकिन ऐसे बहुत कम होते हैं । सार्थवाह के पुत्र रयणादेवी पर मोहित हुए और उसके साथ अनेक प्रकार की काम-क्रीड़ा करने लगे, वैसे ही बहुत से लोग ललनाओ के हावभाव से मोहित होते हैं और उनके सेवक बनकर रहते हैं । उस समय वे यही समझते है कि इस जगत् में सुन्दरी के समागम - जैसा और कोई सुख नहीं है ! परन्तु, वह समागम अत में बहुत-सी आफतें लाता है और उनका जीवन बरबाद कर देता है । इसलिए कचन और कामिनी के मोह को छोड़ो और दृष्टि आत्मा की तरफ रखकर उसका कल्याण करने में तत्पर होओ। विशेष अवसर पर कहा जायगा । ****
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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