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________________ कर्मबन्ध २८७ इनमें से हर कपाय के—१ अनतानुबधी, २ अप्रत्याख्यानीय, ३ प्रत्याख्यानीय और ४ सज्वलन- - इस प्रकार चार-चार भेद है, जिनका चर्णन हम आगे करेंगे । इन सोलह प्रकार की कपायों को जन्म देने वाली नौ प्रकार की नोकपायें है । उनके नाम हैं - ( १ ) हास्य, (२) रति, (३) अरति, (४) भय, (५) शोक, (६) जुगुप्सा, (७) पुरुषवेद, (८) स्त्रीवेद और (९) नपुंसक - वेद | यहाँ वेट शब्द से काम सना समझनी चाहिए । कपाय कर्मबन्ध का प्रबल कारण है, इसीलिए शास्त्रकारो ने उनसे दूर रहने का बारबार उपदेश दिया है । योग चूल्हे पर पानी की देगची रख दी गयी हो और पानी गरम होने लगे तत्र उसके प्रदेशो मे स्पन्दन होता है, उद्वेलन होता है, चचलता प्रकट होती है, उसी प्रकार वाह्य और आभ्यन्तरिक निमित्तों के मिलने पर आत्म प्रदेशो में जो स्पटन, उद्वेलन या चचलता आती है, उसे शास्त्रीय परिभाषा में योग कहते है । ये योग तीन प्रकार के है - ( १ ) मनोयोग, (२) वचनयोग और (३) काययोग | मन के विविध व्यापार मनोयोग हैं, वाणी या वचन के व्यापार वचनयोग है और शरीर या काया के व्यापार काययोग है । कर्मबन्ध होने में योगो का महत्त्वपूर्ण भाग होता है, यह याद रखना चाहिए । कर्मबन्ध के प्रकार कर्मबन्ध के कारण समझ लेने के बाद कर्मबन्ध के प्रकार भी समझ लेने चाहिए | कर्मबन्ध के चार प्रकार है - ( १ ) प्रकृतित्र ध, (२) स्थितिबध, (३) रसत्र व और ( ४ ) प्रदेश बध | प्रकृति यानी स्वभाव, स्थिति यानी काल की मर्यादा, रस यानी अनुभव और प्रदेश यानी परमाणु ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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