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________________ २७० आत्मतत्व-विचार समता थी; गाति थी, इसलिए वे स्वर्ग पहुँचे और देवोपम सुखभोग करने लगे। कर्मसत्ता मनुष्य के जीवन मे कैसा आकस्मिक परिवर्तन लाती है, इसका यह ज्वलन्त उदाहरण है। एक समय चिलातीपुत्र का नाम लेना भी पाप था, आज वे वन्दनीय है ! इस प्रकार कर्मशक्ति त्रिलोक मे असख्य आश्चर्य उत्पन्न करती है। लौकिक शास्त्रों मे भी कर्म की शक्ति के विषय मे ऐसा ही एक श्लोक कहा है : ब्रह्मा येन कुलालवन्नियमितो ब्रह्माण्डभाण्डोदरे, विष्णुर्येन दशावतारगहने क्षिप्तो महासङ्कटे । रुद्रो येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं सेवते, सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गगने तस्मै नमः कर्मणे॥ ----उस कर्मशक्ति को नमस्कार हो कि, जिसने ब्रह्मा-जैसे महान देव को सृष्टि रचने का कुभार का-सा काम सौंपा। विष्णु को सृष्टि के पालन करने का गहन कार्य सौपा और उसे दस अवतार लेने का कर्तव्य टेकर बडे ही सकट में डाल दिया । महेश को सृष्टि के सहार का कार्य दिया और उसके हाथ में भिक्षा का पात्र दे दिया कि भिक्षा से अपना निर्वाह करता रहे। सूर्य को नित्यप्रति आकाा मे परिभ्रमण करते रहने का काम दे दिया।' बौद-शास्त्रो मे नीचे का श्लोक आता है :इत एकनवतितमे कल्पे, शक्त्या मे पुरुषो हतः । तेन कर्मविपाकेन, पादे विद्धोऽस्मि भिक्षवः॥ -विहार करते हुए बुद्ध के पैर में कॉटा लग गया । तब वे भिक्षुओ से कहने लगे- "हे भिक्षुओ ! आज से इक्यावन कल्प में, जब कि मैं
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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