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________________ कर्म की शक्ति २६६ और मन को वा मे नहीं रख पाते । चिलातीपुत्र का तो सारा जीवन अधमता में बीता था। उसने न कभी सत्सग किया था न धर्मोपदेश मुना था । परन्तु , पुण्योदय से भरे जगल मे साधु के दर्शन हुए, उपदेग मुना, श्रद्धा लाया, जान पाया और जानी हुई बात पर फौरन् अमल शुरू कर दिया। यह कोई सहल बात नहीं है। यास्त्रकार भगवतो ने कहा है कि : चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो। माणुसत्तं सुइ सद्धा संजमम्मिय वोरियं । -~-इस ससार मे प्राणियों को इन चार वस्तुओ की प्राप्ति कठिन है, मनुष्यत्व, श्रुति (शास्त्र श्रवण ), श्रद्धा और सयम में पुरुषार्थ । चिलातीपुत्र भाव-साधु की कोटि में पहुंच गये और ध्यानमग्न हो गये। लेकिन, उनकी देह अभी तक ताजे लोहू से सनी हुई थी, इसलिए उसकी गध से खिंचकर बहुत-सी वनकोड़ियाँ आकर चिलातीपुत्र के शरीर पर चढकर चटकिया ले लेकर लोहू का आस्वादन करने लगी। इतनी कीडियों के काटने का कष्ट सामान्य नहीं था, पर चिलातीपुत्र 'उपशम' का रहस्य समझ गये थे, इसलिए उन्होने कीडियो पर क्रोध नहीं किया, 'विवेक' का रहस्य समझ गये थे, इसलिए उन्होने शरीर पर ममता नहीं दिखायी, और 'सवर' का रहस्य समझ गये थे, इसलिए दुःख का कोई प्रतिकार नहीं किया । धर्ममार्ग पर चलनेवालो की कठिन परीक्षा भी होती है, पर उस परीक्षा में से पार उतरनेवालों का बेडा पार हो जाता है, यह कभी न भूलिये | कीड़ियों का उपद्रव घडी-दो-बड़ी नहीं, प्रहर-दो-प्रहर नहीं, पूरे ढाई दिन तक जारी रहा । फिर भी चिलातीपुत्र ने अपने मन को जरा भी डिगने न दिया । जब उन्होंने देहत्याग किया, तब उनके चित्त में
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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