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________________ २६८ आत्मतत्व-विचार कहने लगा--"सावु जी । मुझे थोडे में धर्म बताइये। अगर नहीं कहेंगे तो आपका हाल इस मुषमा-जैसा होगा। महापुरुप ऐसी धमकी से नहीं डरते । डरे तो घोर जंगलो मे जाकर तप-ध्यान क्यो करे ? हर प्रकार का भय जीतना उनका विशेष लक्ष्य होता हैं। उनका हृदय परोपकार भावना से भरा होता है; इसलिए किसी को लाभ होता हो तो धर्म अवश्य सुनाते है। यह साधु बडी उच्चकोटि के थे। उन्हें चारणलब्धि प्राप्त थी, उन्हें उड़ने की शक्ति प्राप्त थी। उन्होने चिलातीपुत्र से कहा-"उपगम, विवेक, सवर ।" और वे आकाश में गमन कर गये। चिलातीपुत्र ने इन शब्दो का मतलब कुछ न समझा। लेकिन, यह बात उसके मन में बस गयी थी कि, साधु चमत्कारिक शक्तिधारी थे और उनके कहे हुए गन्न अत्यन्त कल्याणकारी हैं। इसलिए, वह उन शब्दो के अर्थ पर विचार करने लगा। ज्ञान बाहर से नहीं आता; अन्दर से प्रकट होता है। उसमे चिन्तनमनन निमित्त भूत बनता है । इसलिए कुछ ही देर में 'उपनाम का अर्थ उसकी समझ में आने लगा कि "उपशम माने शांत होना, क्रोध छोड़ देना।" यह जानकर उसने क्रोध की प्रतीकरूप अपनी तलवार छोड़ दी। इसी प्रकार 'विवेक' का अर्थ प्रकट हुया कि 'तन, धन और स्वजन का मोह त्याध्य समझने का नाम विवेक है।' यह जानकर उसने मोहप्रतीक सुषमा का सर दूर फेंक दिया । तीसरे पद 'सवर' का भी अर्थ जाना कि 'इन्द्रियों तथा मन की प्रवृत्तियों को रोकना सवर है ।' यह जानकर वह तन और मन को स्थिर करके उसी जगह शात होकर खडा रहा । सबर आया कि साबुता आयी। चिलातीपुत्र भाव से साधु बना । यह घटना साधारण चमत्कारी नहीं है । लोग जिन्दगी भर साधु-सन्तो के व्याख्यान सुनते रहते है, अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढते है फिर भी इन्द्रियों
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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