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________________ श्रात्मसुख २२५ वह थूक दो जोकि तुमने मुँह में दबा रखा है।" फिर उसने उसे सरोबर मे कुल्ला - स्नान कराया और फिर कमल पर बिठाया । अब गुबरीले को कमल की सुगंध आने लगी और उसे स्वर्गीय सुख का अनुभव होने लगा । कुछ देर बाद भौरे ने पूछा - "क्यों मित्र ? क्या अब भी घर जाना चाहते हो ?" गुवरीला बोला -- "ऐसा बेवकूफ कौन होगा जो ऐसे स्वर्ग को छोड़ कर नरक में जायेगा ?" सगे-सम्बन्धी, साधन-सम्पत्ति, अधिकार- कीर्ति की गोली - जैसा है । वह आपको आत्मसुख रूपी लेने देता । जब आप इस गोली को दूर कर देंगे, ले सकेंगे । मोह गोवर आदि का कमल की सुगंध नहीं तभी कमल की सुगन्ध पौद्गलिक सुख से अनासक्त हो जाने पर आपको आत्मसुख की तीव्र अनुभूति विद्युत् वेग से होने लगेगी । नकली सुख के व्यान में डूबे रहने के ओर देखने की भी फुरसत नहीं मिलती ! परिणाम दुःख है । कारण, हमें असली सुख की परन्तु इस नकली सुख का - 'पूत के पैर पालने में दिख जाते हैं' – यह कहावत तो आप जानते ही हैं । अग्रेजी में भी एक कहावत है कि 'आनेवाली घटनाये अपनी छाया पहले डालने लगती है ।" सासारिक, नकली, सुख अगर वर्तमान काल मे ही दुःख देता हो तो भविष्य में वह क्या-क्या न करेगा ? आदमी स्वाद के वशीभूत होकर ठूस ठूंस कर खाता है। फिर अजीर्ण के कारण खाना छोड़ना पडता है और रोगजन्य पीड़ा भोगनी पडती है । वैद्य डॉक्टर का आश्रय लेना पड़ता है । दुःख सहन करना पड़ता है और पैसा भी बिगाडना पड़ता है । वस्त्राभूषण का आनन्द अधिक लेने में गुड का शिकार होना पड़ता है । सत्ता का सुख भोगने में दुश्मन की फिक्र सदा बनी रहती है और उपाधियों एक के बाद एक १५
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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