SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा की शक्ति नमुचि ने कहा-"अच्छा, मै तुमको तीन डग जमीन रहने के लिये देता हूँ, उसी में रहना । लेकिन, अगर कोई भी साधु उससे बाहर रहता मालम होगा, तो उसका तत्काल शिरच्छेद कर दिया जायगा।" महामुनि विष्णुकुमार ने कहा-"तथास्तु" (ऐसा ही हो) तब उनने वैक्रियक लब्धि के योग से अपना शरीर बढाना शुरू कर दिया और देखते-देखते उसे एक लाख योजन परिमाण वाले मेरु पर्वत के बराबर चना दिया और नमुचि को जमीन पर डालकर अपना एक पैर लवणसमुद्र के पूर्वी किनारे पर और दूसरा पैर पश्चिमी किनारे पर रखकर खडे हो गये। इस भयकर घटना ने पृथ्वी पर हाहाकार मचा दिया। यह देखकर इन्द्र ने देवागनायो को आना की-"महामुनि विष्णुकुमार कुपित हुए है । तुम सर्वजप्रणीत शास्त्रों का भाव गायन में उतार कर उनके सामने गाओ, तब उनका कोप शात होगा। अन्यथा यह अखिल विश्व घड़ी भर मं ही अभूतपूर्व विपत्ति में पड़ जायगा।" देवागनायें उस प्रकार का गायन गाने लगी। इधर नमुचि अपने सिहासन से गिरा पड़ा था और उसके मुंह से रक्त निकल रहा था । दूसरी ओर महाराजा पद्म महामुनि विष्णुकुमार से गद्गद् कंठ से प्रार्थना कर रहे थे-“हे महर्षि । हे करुणासागर । अपना कोप शात कीजिये । यह नराधम नमुचि साधु-महात्माओं को सता रहा है, इसकी मुझे अभी तक खबर नहीं हुई थी। परन्तु चूंकि नमुचि मेरा सेवक है, इसलिए यह अपराध मेरा ही है । मुझे क्षमा कीजिये।" देवो और दानवों के राजा भी ऐसी ही स्तुति कर रहे थे और सकल संघ भी उनसे गात होने की विनती कर रहा था, इसलिए महामुनि विष्णुकुमार ने विचार किया-श्री सघ मुझे मान्य है और मेरा भाई तथा देव-दानव सब अनुकम्पा करने योग्य है।" उन्होंने अपने उस रूप का
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy