SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्याख्यान तेईसवाँ चौवीसवाँ वीस विषय अव्यवसाय अध्यवसाय का अर्थ अव्यवसाय की महत्ता प्रसन्नचन्द्र राजर्षि की कथा अध्यवसाय किसको होते हैं अध्यवसाय के परिवर्तन स्थिति-बंध मै अध्यवसाय कारणभूत है स्थिति के प्रकार आठकों की स्थिति किसको कैसा स्थितिबंध होता है अव्यवसायों की तरतमता - लेश्या जम्बू और ६ पुरुष लेश्या के विषय मे कुछ प्रश्न कर्म का उदय कर्म-बन्धन होता ही रहता है कर्म तुरन्त उदय में नहीं आता आत्मा को आठों कर्मों का उदय होता है। अबाधाकाल सत्ता में पड़े हुए कर्मों में परिवर्तन होता है उदय में आता हुआ कर्म किस तरह भोगा जाता द्रव्यादि पॉच निमित्त कर्म किसी के रोके नहीं रुकते कर्म का प्रभाव अनादि काल से है उदयकाल का प्रभाव मृगापुत्र पृष्ठ ३४० ३४० ३४० ३४१ ३४५ ३४७ ३४९ ३४९ ३४९ ३५१ ३५१ ३५२ ३५३ ३५६ ३५६ ३५६ ३५७ ३५८ ३५९ है ३५९ ३६१ ३६१ ३६२ ३६३ ३६४
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy