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________________ १६२ श्रात्मतत्व-विचार "लेकिन तुमने ऐसे प्रगाढ अन्धकार मे उस सर्प को देखा वैसे ?'चन्दनवाला ने आश्चर्य से पूछा । "आपके प्रताप से हुए केवलनान के द्वारा, '-मृगावती ने विनयपूर्वक जवाब दिया । उसी समय चन्दनवाला उठकर खडी हो गयी और उसने मृगावती के चरणो में गिरकर आगातना के लिए क्षमा मांगी। इस तमाम घटना पर विचार करके उसके हृदय में भी प्रायश्चित की आग प्रज्वलित हो गयी और उसमें सब घातिया कर्म जलकर भस्म हो गये और उसे भी केवलनान प्रकट हो गया । किन्हीं लोगो को सर्वजता की बात इसलिए गले नहीं उतरती कि, आजकल कोई सर्वन प्रत्यक्ष देखने में नहीं आता। लेकिन, हर एक वस्तु प्रत्यक्ष प्रमाण से ही सिद्ध नहीं होती । कुछ शास्त्राधार से, कुछ युनि से, और कुछ अनुभव से सिद्ध होती है । दूसरे, आज कोई सर्वत्र भले ही न बताया जा सके, पर ऐसे व्यक्ति देखने में आते हैं कि जिनसे हम सर्वज्ञ का अनुमान कर सकते हैं । इसे हम यहाँ विस्तार से समझायेंगे । __शास्त्रों में बताये हुए ज्ञान के पाँच प्रकारो मे एक केवलजान है। अगर केवलजान सर्वजता-जैसी कोई वस्तु इस विश्व मे न होती, तो शास्त्रकार उसका निटेंग क्यो करते ? हर तीर्थंकर सर्वज और सर्वदर्शी होता है । इसीलिए 'सव्वन्नूण सव्वदरिसीण' कह कर उनकी स्तुति की जाती है । इस सर्वजता की प्राप्ति के उपाय शास्त्रो मे विस्तारपूर्वक बतलाये गये है । अन्य महापुरुषो और महासतियो को केवलज्ञान प्रकट होने की बात भी शास्त्रो तथा चारित्रग्रन्थो मे मिलती है। इस प्रकार शास्त्र-प्रमाण से सर्वजता सिद्ध है। अब युक्ति से विचार करें । एक लानटेन पर मोटा कपडा ढंका हो, तो प्रकाश कम निकलता है, पतला ढंका हो तो ज्यादा निक्लता है, और कपडा हटा दें तो पूरा प्रकाश निकलता है । इसी प्रकार आत्मा से कम का आवरण हट जाये तो पूर्ण ज्ञान क्यों न होगा ? कर्म ज्ञान पर पर्दा डाल
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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