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________________ १३६ आत्मतत्व-विचार वैनेयिकी-बुद्धि __ एक राजा मना लेकर विजय यात्रा पर निकला। मजिल-दर-मजिल वह एक जगल में आ पहुँचा। वहाँ स्त्र तृपानुर होकर पानी की खोज करने लगे । पर, पानी नहीं मिला । आरिवर एक वृद्ध सैनिक ने कहा"गधो को खोल कर छोड दो। वे भृमि बते हुए जहाँ पहुँचें वहाँ पानी मिल जायेगा ।' सेना के साथ का बोझ होने के लिए कुछ गधे भी र गये थे, उन्हें खोल देने का राजा ने हुक्म किया। वे गधे भूमि घतेसूंघते ऐसी जगह पहुंचे जहाँ पानी से भरा हुआ एक तालान था। पानी पीकर राजा और सेना ने अपने प्राण बचाये। यहाँ वृद्ध मनिक की बुद्धि को वैनेयिकी समझना, कारण कि उसने वह बुद्धि बड़ा-बूढों का विनय करके प्राप्त की थी। कार्मिकी-बुद्धि घानी चलाना और लोगों को तेल देना तेली का धधा है । तेलिन दूकान रोज पर बैठतो और लोगों को तेल बेचती। इस कार्य में वह खुब अभ्यस्त थी। एक बार वह किसी काम से कोटे पर गयी। उधर ग्राहक आ गये । वे कहने लगे-“दुकानदारी के वक्त तेलिन कहाँ चली गयी ? हम कर तक राह देखें ?' तेलिन ये शब्द सुन कर बोली-"जिसे तेल लेना हो वह इस खिडकी के नीचे आ जाये। जितना चाहिये उतना तेल दूँगी ?" इस पर तेल लेने वाले खिड़की के नीचे जमा हो गये। पहले ने कहा : 'एक सेर' तेलिन ने ऊपर से धार की। उसके बर्तन मे बराबर एक सेर तेल गिरा। न कम न ज्यादा और उसने धार ऐसी की कि एक बूंद भी बाहर नहीं गिरी। इस तरह जिस ग्राहक ने जितना तेल मॉगा उतना बराबर दिया । इसे कार्मिकी बुद्धि समझना ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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