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________________ 1 आत्मा का खजाना १३५ को बेचने लगा तब लोग कहने लगे- "यह सब ककडियाँ तो खायी हुई है ।" उस चालाक आदमी ने ये शब्द पकड़ लिये और किसान से कहा - " मैने अपनी शर्त पूरी कर दी है; इसलिए अब तू अपनी शर्त पूरी कर !" किसान ने तो यह मान रखा था कि ऐसा लड्डू देने का वक्त ही नहीं आयेगा, इसलिए उसने इस सम्बन्ध में कुछ विचार ही नहीं किया । पर, अब वह घबराया और शर्त से छुट्टी पाने के लिए उसे पच्चीस रुपये ढेने लगा । लेकिन, उसने इसे स्वीकार नहीं किया । किसान ने पच्चीस के बजाय पचास रुपये देने की, सौ रुपये देने की बात कही, पर वह नहीं माना । आखिर किसान ने विचार किया - "यह धूर्त मुझे छोडनेवाला नहीं है, इसलिए किसी अक्लमन्द को खोजू और इसका उपाय पूछूं ।” अतः वह एक अक्लमन्द आदमी के पास गया, जो कि अपनी औत्पत्तिकीबुद्धि के लिए प्रख्यात था। उसने किसान की सारी बात सुनने के बाद कहा - "इसमें घबराने की क्या बात है ? यह तो बड़ी सहल बात है । तू उस आदमी को ऐसा लड्डू दे सकता है जो कि नगर के दरवाजे से बाहर न निकल सके ।" फिर उसने क्या करना है, सब समझा दिया । वह किसान हलवाई की दुकान से मुट्ठी में समाने योग्य मामूली लड्डू लेकर उस लेकर उस धूर्त और नगर के लोगों के साथ शहर के दरवाजे पर गया और उस लड्डू को दरवाजे के बीच में रखकर कहने लगा-"हे लड्डू ! तू नगर के दरवाजे में से बाहर निकल ।” पर ढड्ड नगर के दरवाजे से बाहर नहीं निकल सका। इसलिए, उसने वह लड्डू धूर्त को देते हुए कहा – “यह लडड्डू ऐसा है कि, जो नगर के दरवाजे में से बाहर नहीं निकल सकता !" वह क्या बोलता ? सेर को सवा सेर बराबर मिल गया था ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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