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________________ १३० श्रात्मतत्व-विचार इलापुत्र बॉस पर चढ़ गया और नटपुत्री पग मे घुँघरू बॉधकर किन्नर-स्वर से गा-गाकर ढोल बजाने लगी । इलापुत्र को दृढ़ विश्वास था कि राजा इस खेल से जरूर खुश होगा और नटपुत्री हमेशा के लिए मेरी हो जायेगी। पर, राजा ने जब नटपुत्री का अद्भुत सौन्दर्य देखा तो उसकी स्वयं की नीयत बिगड गयी । वह सोचने लगा कि - "अगर यह नट बॉस से नीचे गिर पड़े और मर जाये तो इस नटपुत्री को मैं अपने रनवास में रख लूँ ।" यह भी कर्म की एक विचित्रता हो कही जायेगी कि जिसे रिझाना है, जिसे रिझाकर बड़ा इनाम लेना है, वह ही मन में दुष्ट विचार करने लगा ! इला पुत्र ने खेल बड़ा अद्भुत् किया और लोग बड़े खुश हुए; पर राजा नहीं रीझा । इसलिए वह बॉस पर फिर चढ़ा। फिर भी नतीजा वही निकला। अगर राजा न रीझा तो चारह वर्ष तक की हुई मेहनत फिजूल ही चली जायगी, यह सोचकर इलापुत्र तीसरी बार चौथी बार बॉस पर चढ़ा और अपनी विद्या का कमाल दिखलाया। पर, जिसके दिल में पहले से ही गॉठ हो वह क्यों रीझने लगा १ लोग सोचने लगे कि, ऐसे अद्भुत् खेल से भी राजा क्यों नहीं खुश होता ? जरूर कुछ ढाल में काला है । राजा के इस व्यवहार से रानी भी विचार में पड़ गयी और उसके मन मे शका उठने लगी कि कहीं नटपुत्री पर राजा का दिल तो नहीं आ गया । आखिर इलापुत्र पॉचवीं बार बॉस पर चढा और जॉबाजी से खेल दिखाने लगा | उस समय उसकी नजर पास की हवेली मे गयी । वहाँ एक अत्यन्त रूपवती नवयौवना स्त्री हाथ में मोदक का थाल लिए खड़ी एक मुनिराज से उसे ग्रहण करने के लिए विनती कर रही थी । परन्तु, मुनिराज मोदक नहीं ले रहे थे, आँख उठाकर उस स्त्री की ओर देख भो नहीं रहे है |
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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