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________________ प्रात्मा का खजाना १२६ हमारे मकान के नीचे जो नट लोग तमाशा दिखला रहे थे, उनकी पुत्री की शादी मेरे साथ हो तो हॉ, नहीं तो ना!" पिता ने कहा-"अपने यहाँ सुन्दर कन्याओं की क्या कमी है कि, तू उस नटपुत्री से शादी करने की इच्छा करता है ?" पर, इलापुत्र ने न माना। आखिर धनदत्त सेठ ने नटो को बुलाकर कहा कि-"तुम चाहे जितना धन ले लो, पर अपनी पुत्री को मेरे पुत्र के साथ व्याह दो।" नटो ने कहा-"सेठ ! हम अपनी पुत्री की बिक्री नहीं करना चाहते । लेकिन, अगर आपका पुत्र हमारे साथ रहे और हमारी सब विद्याएँ सीखकर किसी राजा को रिझाये और उससे बडा इनाम पाये, तो उसके साथ अपनी पुत्री की शादी कर देंगे।" ____ इस शर्त को अपमानजनक मानकर धनदत्त सेठ ने साफ इनकार कर दिया। पर, इलापुत्र का मन नटी से चिमटा हुआ था, इसलिए उसने यह शर्त मजूर कर ली और माता-पिता और धन-वैभव का त्याग करके, नटनी के साथ चल पड़ा। मोह से मनुष्य के मन कैसी व्याकुलता पैदा हो जाती है, उसका यह नमूना है। ___ नटी के साथ रहकर, इलापुत्र उनकी सब विद्यायें सीख गया और राजा को रिझाने के इरादे से वह बेनातट नगर में आया । वहाँ राजा की आज्ञा लेकर राजमहल के निकटस्थ चौक में खेल करने लगा। आजकल 'सर्कस' का खेल देखकर लोग दांतों में उँगली दबा लेते हैं, पर हमारे नटो के खेल उनसे बहुत बढ़कर थे। बॉस पर बॉस बॉधे और उस पर भी बॉस बाँधे, फिर सर पर सात घड़ा एक के ऊपर एक लेकर उस पर चढ़ जाये । उसमें न उसका पग डिगे न एक भी बेड़ टूटे। उसी तरह हाथ में छुरी, बाँका या तलवार लेकर बॉस पर चढ कर उसके अनेक प्रकार के खेल दिखलावे । इलापुत्र भी ऐसे अद्भुत खेल करने लगा। राना और रानी उन खेलो को देखने के लिए झरोखे पर आकर बैठे और लोग चौक मे इकट्ठे हो गये।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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