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________________ आत्मतत्व-विचार नहीं बनता । एक वस्त्र की घड़ी करके उसको छोटा बनायें तो वह उसका 'सकोच' किया कहलायेगा, और उसको फाड़कर छोटा बनायें तो उसके खड करना अथवा उसका खडन करना कहलायेगा । 'सकोच' और 'खण्डन' का यह अन्तर अब आपके लक्ष में बराबर आ गया होगा। 'संकोच' और 'विस्तार' का गुण समझने के लिए दीप-प्रकाश का दृष्टान्त उपयोगी है। एक दीप को ४०x४० फुट के कमरे में रखा हो तो उसका प्रकाश उतनी जगह में व्याप्त होकर रहता है, २०४२० फुट के कमरे में रखा हो तो उसका प्रकाश उतनी जगह में व्याप्त होकर । रहता है और १०x१० फुट के कमरे में रखा हो तो उसका प्रकाश उतनी जगह में व्याप्त होकर रहता है। . आत्मा देहपरिमाण है आत्मा देह के परिमाण के अनुसार व्यात होकर रहता है, इसलिए "देहपरिमाण' कहलाता है ।* आत्मा के गुण देह से बाहर नहीं जान पडते, इसलिए उसे देह से अधिक परिमाणवाला नहीं माना जा सकता। अगर आत्मा को देह से अधिक परिमाणवाला माने, तो वहाँ सुख-दुःख का अनुभव किस तरह होगा ? और, सुख-दुःख का अनुभव न हो तो कर्म का भोक्तृत्व कहाँ रहा ? अगर कर्म का भोक्तृत्व न हो, तो कर्तृत्व का भी क्या अर्थ ? इस तरह आत्मा को देह से अधिक परिमाणवाला मानने से अनेक आपत्तियाँ आती हैं। * आत्मा 'देहपरिमाण' है, ऐसी मान्यता उपनिषदों में भी मिलती है। कौपीतकी-उपनिपद् में कहा है कि, जैसे छुरी अपने म्यान मे, जैसे अग्नि अपने कुड में व्याप्त है, उसी तरह प्रात्मा शरीर में नस से शिख तक व्याप्त है। तैत्तिरीय. उपनिषद में श्रात्मा को अन्नमय-प्राणमय-मनोमय-विज्ञानमय कहा गया है, वह शरीर परिमाण मानने पर ही घट सकता है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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