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________________ पुनर्जन्म ६५ हैं, अर्थात् अच्छी क्रिया के अच्छे सस्कार पड़ते है और बुरी क्रिया के बुरे सस्कार पड़ते हैं । जो जिन मंदिर जाते है, देव-दर्शन करते है, सेवा-पूजा करते है, सद्गुरु का समागम करते हैं, उनकी व्याख्यान - वाणी सुनते हे, व्रतनियम करते हे और अच्छी-अच्छी धार्मिक पुस्तकें पढ़ते हे, वे धार्मिक बनते हैं। और जो खाने-पीने की बातो में ही व्यस्त रहते हे, नयी-नयी भोग सामग्री खोजते रहते हे, नाटक-तमागी में अपना समय बिताते है तथा शरात्री, गॅजेड़ी या जुवारी मित्रो की सगत मं फॅसे हे; वे अधमी बनते हैं । कहावत है कि, 'जैसा सग वैसा रग ।' वस्तुपाल तेजपाल का दृष्टान्त संयोगो से सरकार सुधर भी सकते हैं। वस्तुपाल ओर तेजपाल पहले से उदार नहीं थे । पर, एक बार उन्हें सकुटुम्ब यात्रा पर जाना हुआ । सम्पत्ति बहुत थी, उसे कौन संभालेगा ? यह सोचकर अगर्पियो का चरू भरा और उसे साथ ले लिया । यात्रा में जहाँ जायें वहाँ उसे साथ रखे । पूजा करने जाये तो चरू देखकर जाये और पूजा करके आये तो फिर देख | पूजा में भी ध्यान में रहे । खाते-पीते, उठते-बैठते, नहाते-धोते, हर समय चरू की चिन्ता रखे । उनकी माता सस्कारी थी । उससे यह सहन न हुआ । उसने कहा - "बेटो ! घड़ी-घड़ी चरू में ध्यान रखते हो, तो यात्रा कैसे होगी ' यात्रा में तो धर्म करना चाहिए। वह इस तरह नहीं होता, इस तरह तो मोह की वृद्धि हो रही है ।" पुत्र विनयी थे । उन्होंने कहा - ' तो इस चरू का क्या करें ?' माता ने कहा- 'उसे कूड़े वाले स्थान में गाड दो, लौटते समय वहाँ से ले लेना ।" माता के इस वचन को मान कर, रात के समय दोनो भाई उस चरू को गाड़ने गये । 'वहाँ जरा जमीन खोदी तो कुदाली किसी ठोस चीज के साथ टकरायी और खोदने पर उसमें से एक चरू निकला। वह ऊपर तक अशर्फियों से भरा हुआ था । ५
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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