SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मतत्व-विचार स्थूल है। 'ओराल' का अर्थ है 'हाड-मास' यानी जिस गरीर में 'हाडमास' आदि हो वह औदारिक । बाकी के शरीर में हाड-मास नहीं होते। जिस शरीर में छोटे से बड़ा होने की और बडे से छोटा होने की अथवा मोटे से पतला होने की और पतलं से मोटा होने की, ययवा एक रूप से अनेक रूप धारण करने की और अनेक रूप मे एक रूप धारण करने की विक्रिया होती है वह वैक्रिय कहलाता है। देव और नारकियों को ऐसा गरीर जन्म से ही होता है, मनुष्य को वह लब्धि से प्राप्त होता है। औदारिक गरीर आत्मा से अलग हो जाने के बाद वैसी ही रह सकता है, जबकि वैक्रियक शरीर आत्मा से अलग हो जाने पर कपूर की तरह उड़ जाता है, बिखर जाता है। __ चतुर्दश पूर्वधर# मुनि सुक्ष्म अर्थ का सन्देह निवारण के लिए केवली भगवत के पास जाने के लिए अथवा तीर्थंकर की ऋद्धि देखने के लिए तीर्थकर के पास भेजने के लिए विशुद्ध पुद्गलो से बने हुए जिस अव्याधाती शरीर को धारण करते हैं, वह आहारक कहलाता है। जो गरीर खाये हुए आहार को पचाने में समर्थ है और तेजोमय है और उष्मा देनेवाला है, वह तैजस कहलाता है। और, जानावरणी आदि आठ कमाँ का समूह जो आत्म-प्रदेन से एक हुआ रहता है, वह कार्माण्य गरीर कहलाता है। ये गरीर उत्तरोत्तर सूक्ष्म है । यानी औदारिक से बैंक्रिय सूक्ष्म है; वैक्रिय से आहारक सूक्ष्म है , आहारक से तैजस् सूक्ष्म है और तैजस से कार्माण्य सूक्ष्म है। संस्कारों का संचय और उनका सुधार आत्मा शरीर द्वारा क्रिया करता है और उसके सस्कार उस पर पड़ते *चौदह पूर्व, सूत्र और अर्थ को जाननेवाले चतुर्दश पूर्वधर कहलाते हैं । चौदह पूर्व वारहवें अग दृष्टिवाद का एक भाग था और उसमें अनेक गूढ विधायें थीं।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy