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________________ तृतीय अध्याय ७६ श्री टेसिटरी ने बनारसीदास की अन्य रचना गोरखनाथ के वचन' का उल्लेख किया है। किन्तु यह उनका कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ न होकर, मात्र चौदह पंक्तियों की छोटी सी कविता है और बनारसी विलास में 'अथ गोरख नाथ के वचन' नाम से संग्रहीत है। इसमें गोरखनाथ के सिद्धातों का संक्षिप्त विवेचन और अनानी पुरुप की स्थिति का निदपण है। बनारसीदास अत्यन्त लोकप्रिय कवि रहे हैं। उनके ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियाँ पूरे नर भारत में बिखरी पड़ी हैं। विगत ५० वर्षों में नागरी प्रचारिणी सभा के नवावधान में हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों की खोज हो रही है और गायद ही कोई पिला खोज विवरण हो, जिनमें बनारस की एकाध रचना का उल्लेख न हो। किन्तु प्रति के अस्पष्ट होने अथवा एक ही गुटके में अनेक कवियों की रचनाओं के होने के कारण बोज वर्मा को प्राय: भ्रम का शिकार होना पड़ा है। जमे मन् १९८-१० के रोज विवरण में मथग में बनारसी विलास' की एक खंडित प्रति प्राप्त होने का उल्लेख है। प्रति के अपूर्ण होने के कारण ग्रन्थ के नंग्रह का 'जगमोवन' का पना अन्वेषकको नहीं चलान १९३०-३४ के खोज विवरण में बनान्सीदाम की एक रचना दतिवार की कथा का उल्लेख है। यह प्रति आगग में प्राप्त हुई है। इसके बनारसीदास कृत होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। सन् १९३५-३७ के खोज विवरण में बनारसी कृत चार पुस्तकों का उल्लेख है-ज्ञान पच्चीसी, शिव पच्चीसी वैराग्य पच्चीसी और वेदान्त अष्टावक्र । वैराग्य पचीमी के अाधार पर इन चारों का रचना काल सं० १७५० मान लिया गया है। इनमें प्रथम के-जान पच्चीसी और शिव पच्चीसी वनारसीदास रचित हैं और बनारसी विनाय' में संग्रहीत भी हैं। किन्तु 'वैराग्य पच्चीसी' भैया भगवतीदास की रचना है। रचना के अंत में कवि ने अपना नाम भी दे दिया है : भइया की यह वीनती चेतन चितहिं विचार । दरसन ज्ञान चरित्र में आपा लेह निहार ||२४|| एक सात पंचास के संवत्सर सुपकार । पोप सुकुल तिथि धरम की जै जै बृहस्पतिवार ॥२५॥ !! इति श्री वैग्य पच्चीसी सम्पूर्णम् ।। भैया भगवतीदास के 'ब्रह्मविलास' नामक संग्रह में यह रचना (पृ० २२५-२६) प्रकाशित भी है। ऐसा प्रतीत होता है कि खोजकर्ता ने असावधानी में इसे 1. Encyclopedia of Religion and Ethics, ११ वां जिल्द, पृ०८३४ । २. हस्तलिन्वित हिन्दी ग्रन्थों का सत्रहवाँ त्रैवार्षिक विवरण, मं० पं० विद्याभूषण मिश्र, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, सं० २०१२ वि०, पृ०६७-६८। हस्त लिखित हिन्दी ग्रन्थों का पन्द्रहवाँ वार्षिक विवरण, सं० डा. पीनाम्बर दत्त बड़थ्वाल, पृ०८६,८७। ४. सनिम्बित हिन्दी ग्रन्थों का सोलहवाँ वार्षिक विवरण, सं० डा० पीताम्बर दन बड़थ्वाल, पृ०६७ से ७१ तक।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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