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________________ अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद 'पगा परण अप्पा माइवइ. मण वय काय ति सदधि । राग रोस वे परिहरिवि, जइ चाहहि सिव सिद्धि ॥२४॥ राग रोस जो परिहरिवि, अप्पा अप्पइ जोइ । जिणसामिउ एमउ भणई, सहजि उपज्जइ सोइ ॥२५ । अन्त में कवि कहता है कि व्रत, तप, नियम आदि का पालन करते हुए भी जो 'प्रात्मस्वरुप' से अनभिज्ञ हैं, वे मिथ्यादृष्टी हैं और वे कभी निर्वाण को प्राप्त नहीं हो सकी। निर्वाण प्राप्ति के लिए कर्मों का क्षय और आत्मा का परिज्ञान अनिवार्य है : वउ तउ णियमु करतयहं, जो ण मुणइ अप्पाणु। सो मिच्छादिहि हवइ, गहु पावहि णिव्वाणु ॥४५।। जो अप्पा णिम्मलु मुणइ, वय तब सील समण्णु । सो कम्मक्खउ फुडु करई, पावइ लहु णिव्वाणु ॥४६।। ए अगुवेहा जिण भणय, पाणी बोल्लहिं साहु । ते ताविजहिं जीव तुहूं, जइ चाहहिं सिव लाहु । ४७।। : इति अणुवेहा : (७) महयंदिण मुनि दोहापाहुड़ की नई प्रति : महयंदिण मुनि का एक काव्य 'दोहा पाहुड़' (बारहखड़ी) प्राप्त हुआ है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति श्री कस्तूरचन्द्र कासलीवाल को जयपुर के 'बड़े मंदिर के शास्त्र भाण्डार' से प्राप्त हुई थी, जिसकी सूचना उन्होंने 'अनेकान्त' (वर्ष १२, किरण ५) में दी थी। खोज करने पर इसकी एक दूसरी हस्तलिखित प्रति मुझे 'पामेर शास्त्र भाण्डार' जयपुर से प्राप्त हुई है। कासलीवालजी की प्रति में ३३५ दोहे हैं। लिपिकाल पौष सुदी १२ बृहस्पतिवार सं० १५९१ है। उसकी प्रतिलिपि श्री चाहड सौगाणी ने कर्म क्षय निमित्त की थी। मुझे प्राप्त प्रति में भी दोहों की संख्या ३३५ ही है। इसका प्रारम्भ एक श्लोक द्वारा जिनेश्वर की वंदना से हुआ है। श्लोक इस प्रकार है : जयत्यशेषतत्वार्थप्रकाशिप्रथितश्रियः। मोहध्वांतीघनिर्भेदि ज्ञान ज्योति जिनेशिनः ॥१॥ अन्त में लिखा है कि इस प्रति को संवत् १६०२ में वैशाख सुदि तिथि दशमी रविवार को उत्तर फाल्गुन नक्षत्र में राजाधिराज शाह आलम के राज्य में चंपावती नगरी के श्री पार्श्वनाथ चैत्यालय में भट्टारक श्री कुन्दकुन्दाचार्य के पट्ट भट्टारक औ न देव के पट्ट भट्टारक शुभचन्द्र देव के पट्ट भट्टारक श्री प्रभाचन्द्र के शिप्य मंडलाचार्य श्री धर्मचन्द्र देव ने लिपिवद्ध किया : १. दे०, अनेकान्त (वर्ष १२, किरण ५) अक्टूबर १६५२, पृष्ठ १५६-५७ ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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