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________________ भी अपने मूल स्वरूप को पूर्णतया सुरक्षित न रख सका। कालान्तर में वह भी -सिद्धों, नाथों और हिन्दी सन्त कवियों की रहस्य भावना के बहत निकट आ गया, यद्यपि उसके मोटे-मोटे सिद्धान्त अपने अवश्य बने रहे। इसी तथ्य का अध्ययन प्रस्तुत प्रबन्ध का विषय है। इस अध्यन में पाँच खण्ड हैं, जो बारह अध्यायों में विभक्त हैं। प्रथम खण्ड में दो अध्याय हैं। प्रथम अध्याय पृष्ठभूमि का कार्य करता है। उसमें रहस्यवाद के मूल-जिज्ञासा, प्रत्यक्षानुभूति और अन्तर्ज्ञान-की चर्चा है। साथ ही औपनिषदिक रहस्य भावना और रहस्यवादी काव्य की अविच्छिन्न परम्परा को भी संक्षेप में बताया गया है। इसी परम्परा के एक अंग रूप में जन-रहस्यवाद के अध्ययन की भी बात कही गई है। दूसरे अध्याय में यह प्रश्न उठाया गया है कि क्या जैन दर्शन में रहस्यवाद सम्भव है? कई विद्वान् जैन दर्शन को नास्तिक दर्शन मानते हैं और नास्तिक रहस्यवादी नहीं हो सकता। मैंने यह स्पष्ट किया है कि जैन दर्शन नास्तिक नहीं है। वह ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखता है। हाँ, आत्मा-परमात्मा के सम्बन्ध में उसकी धारणाएँ, अन्य दर्शनों से भिन्न अवश्य हैं। यही नहीं, जैन तीर्थंकर, विशेषरूप से ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर आदि, संसार के प्रमुख रहस्यदर्शी हो गए हैं। द्वितीय खण्ड में जैन रहस्यवादी कवियों और काव्यों की चर्चा है। इसमें एक प्रकार से जैन रहस्यवादी काव्य के ऐतिहासिक पक्ष का विवेचन है। वस्तुतः जैन काव्य के प्रति हिन्दी साहित्यकारों ने घोर उपेक्षा का व्यवहार किया है। हिन्दी साहित्य के किसी भी इतिहास लेखक ने उनके उचित मूल्यांकन की चिन्ता नहीं की। यह बड़े खेद की बात है कि मात्र धार्मिक रचनाकार कहकर उनको साहित्यकारों की पंक्ति से निकाल दिया गया। यद्यपि मेरा क्षेत्र अपभ्रंश और हिन्दी (१८वीं शती तक) के जैन कवियों का अध्ययन है तथापि मैंने प्राकत के कुन्दकुन्दाचार्य और स्वामी कार्तिकेय का भी साहित्यिक परिचय दे दिया है। कुन्दकुन्दाचार्य जैनों के आदि कवि हैं। वे सभी के प्रेरणा स्रोत हैं। उनके सभी ऋणी हैं। अपभ्रंश के योगीन्दु मुनि और मुनि रामसिंह के सम्बन्ध में प्राप्त सामग्री का निरीक्षण-परीक्षण करके मैंने नए निष्कर्ष निकाले हैं। इनके अतिरिक्त अपभ्रंश के आनन्दतिलक, लक्ष्मीचन्द और महयंदिण आदि कई कवि मुझे खोज में प्राप्त हुए, अतएव • नए हैं। हिन्दी जैन कवियों में बनारसीदास, भगवतीदास, रूपचन्द, आनन्दघन, यशोविजय, भैया भगवतीदास, पाण्डे हेमराज, द्यानतराय आदि काफी प्रसिद्ध रहे हैं। लेकिन इनमें से किसी पर अभी तक विस्तार से नहीं लिखा गया था। अनेक कवियों की प्रामाणिक जीवनी का भी कोई आधार सुलभ नहीं था। अतएव मुझे इसके लिए अनेक शास्त्र-भाण्डारों में भटकना पड़ा और हस्तलिखित ग्रन्थों का अध्ययन करना पड़ा। इससे मुझे इन कवियों की कई नई पुस्तकें प्राप्त हई और इनके जीवन के सम्बन्ध में भी प्रामाणिक सामग्री मिली। साथ ही ब्रह्मदीप जैसे कुछ नए कवि भी प्रकाश में आए।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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