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________________ ४८ (२) १२५ और १२६ नं ० के दोहे प्रति में नहीं हैं । ( ३ ) प्रति में एक नया दोहा भी है । यह दोहा नं० २०५ के पहले का है| दोहा इस प्रकार है : -- अपभ्रंश और हिन्दी में जैन - रहस्यवाद विसय म सेवहि जीव तुहुं मा चिंतहि हियए । विसमह कारिणि जीवडा पावहि दुक्ख खगेण ॥ (४) प्रति में प्राय: 'य' श्रुति और 'व' श्रुति का प्रभाव है अर्थात् 'य' के स्थान पर 'अ' या 'व' के स्थान पर 'अ' का प्रयोग हुआ है : · कायरु = काअरु (दोहा नं० २८) तिहुवण = तिहुश्रण ( दो० नं० ३९) रहिम = रहि (दो० नं० ४९) वियणि= तिहुवणि ( दो० नं० ५६ ) पियंतु = पिरंतु (दो० नं० ६२) तइलोयहं = तइलोअहं (दो० नं० ६८ ) जोइय = जोइअ ( दो० नं० ७३) मेलयउ = मेलविउ ( ढो० नं० ६५) सुगुरुवडा = मुगुरुअडा (दो० नं० १३०) (५) दो० नं० २११ जिसमें 'रामसिंह' का नाम आया है, वह इस प्रति में इस प्रकार है : -: 'पेहा बारह व जिय भवि भवि एक्क मरणेण । राम सीकु मुणि इम भराइ सिवपुरि पावहि जेण || ' (६) प्रति के अन्त में लिखा है : ' इति द्वितीय प्रसिद्ध नाम जोगीन्दु विरचितं दोहा पाहुडयं समाप्तानि ।' मुनि रामसिंह और योगीन्दु : अतएव मुनिरामसिंह और योगीन्दु में क्या सम्बन्ध है और 'पाहुड़दोहा ' का रचयिता कौन है ? इसका निर्णय कर सकना काफी कठिन हो जाता है । योगीन्दु मुनि का विवरण दिया जा चुका है। उनके दो ग्रंथ - 'परमात्म प्रकाश ' और 'योगसार' प्रसिद्ध हैं । 'दोहापाहुड़' की भाषा-शैली और विषय 'परमात्मप्रकाश' के समान है । 'दोहा पाहुड' के अनेक दोहे 'परमात्मप्रकाश' से मिलते हैं या दोनों एक ही हैं। डा० हीरालाल जैन ने 'पाहुड़दोहा' के लगभग ऐसे ४० दोहों की सूची दी है, जो 'परमात्मप्रकाश' और 'योगसार' में उसी रूप में अथवा थोड़े अन्तर से पाये जाते हैं। इस समता से कर्ता का प्रश्न और अधिक जटिल हो जाता है। प्रश्न उठता है कि क्या (१) योगीन्दु मुनि ही तीनों ग्रंथों के रचयिता थे, अथवा (२) योगीन्दु मुनि और मुनि रामसिंह दोनों नाम एक ही व्यक्ति के थे प्रथवा (३) रामसिंह, योगीन्दु से भिन्न और इस ग्रन्थ के रचयिता थे 1 १. देखिए, पाहुदोहा की भूमिका, पृ० २० ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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