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________________ तृतीय अध्याय पांडे हेमराज की एक नवीन रचना 'उपदेश दोहा शतक' प्राप्त हुई है । यह एक अच्छी रहस्यवादी कृति है। भैया भगवतीदास का ब्रह्म विलास' ब्रह्म में विलास कराने वाला काव्य है । ब्रह्मविलास के अन्न में संलग्न चित्रवद्ध काव्य को देखने से प्रतीत होता है कि आप पर रीतिबद्ध काव्यों का भी कुछ प्रभाव पड़ा था । द्यानतराय का 'द्यानत विलास' एक विशालकाय ग्रन्थ है। इसमें उनकी विभिन्न फुटकल रचनाएँ संग्रहीत हैं। इनमें धार्मिकता का पुट अधिक है तथापि इनकी कुछ रचनाएँ और फुटकल पद अध्यात्म-रस से ओत-प्रोत हैं । २७ इन प्रमुख कवियों के अतिरिक्त १८ वीं शताब्दी के कतिपय अन्य कवियों में भी रहस्यभावना पाई जाती है, किन्तु इनमें साम्प्रदायिकता की मात्रा अधिक है । अतएव इनको मैंने रहस्यवादी कवियों की कोटि में नहीं रक्खा है। ऐसे कवियों में भूधरदास, विनयविजय, दौलतराम आदि का नाम लिया जा सकता है । भूधरदास को कुछ विद्वान् रहस्यवादी कवि मानने के ही पक्ष में हैं, किन्तु उनके तीनों ग्रन्थों-जैन तक, पार्श्वपुराण और पदसंग्रह में जैन पूजा पद्धतियों एवं तीर्थङ्करों की स्तुतियों की ही प्रधानता है । पद संग्रह और जैनशतक के दो-चार पदों में अवश्य आध्यात्मिकता का पुट हैं । किन्नु मात्र इससे कोई रहस्यवादी नहीं हो जाता। १८वीं शताब्दी के बाद के कवि : १८वीं शताब्दी के पश्चात् भी अध्यात्म की यह धारा प्रवाहित होती रही और अनेक कवियों द्वारा प्राचीन परम्परा का पालन होता रहा, यद्यपि कोई उच्च कोटि का साधक नहीं हुआ । १९वीं शताब्दी के छोटे-मोटे कवियों में वृन्दावन, बुधजन, दीपचन्द, चिदानन्द और भागचन्द का नाम आता है । ये कवि भी हमारी अध्ययन सीमा के बाहर पड़ते हैं । अतएव इन पर विस्तार से विचार नहीं किया गया है । कुछ नए कवि : खोज में कुछ रचनाएँ ऐसी भी प्राप्त हुई हैं, जिनके रचनाकारों के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी। ऐसे कवियों में 'ब्रह्मदीप' का नाम सर्वप्रथम आता है । इनकी दो रचनाएं 'अध्यात्म बावनी या ब्रह्म विलास' और 'मनकरहा रास' तथा कुछ फुटकल पद प्राप्त हुए हैं। ब्रह्मदीप के अतिरिक्त ज्ञानानन्द का नाम भी नए कवियों में लिया जा सकता है। इन्होंने 'संयम तरंग' नामक एक आध्यात्मिक ग्रन्थ की रचना की थी। इनमें ३७ पद हैं । रचनाकाल ज्ञात नहीं है । इसकी एक हस्तलिखित प्रति अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में सुरक्षित है ।' अन्तिम पद इस प्रकार है। - १. राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों की खोज ( चतुर्थ भाग, पृ० १५७ )
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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