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________________ आणंदा आनन्दतिलक चिदानन्दु सो णन्दु जिणु सयल सरीरहं सोई। _ महाणन्दि सो पूजियई आणन्दा रे ! गगणि मंडलु थिरु होई ॥१॥ अपु णिरञ्जणु परम सिउ, अप्पा परमाणन्दु । ___ मूढ़ कुदेवण पूजियइ, प्राणन्दा रे ! गुरु बिणु भूलउ अन्धु ॥२॥ अठटसठिट तीरथ परिभमई मुढा मरइ भमन्तु । अप्प विन्दु ण जाणहि, आणन्दा रे ! घट महिं देव प्रणन्तु ।।३।। भितरि भरिउ पाउमलु, मूढा करहि सण्हाणु । जे मल लाग चित्तमहि प्राणन्दा रे! किम जाय सण्हाणि ||४|| झाण सरोवरु अमिय जलू, मुणिवरु करइ सण्हाण। अट कम्म मल धोवहिं, आणन्दा रे ! णियडा पाहुं णिव्वाणु ॥५॥ वेणी संगमि जिण मरहु, जलणिहि झंप मरेहु । __ साणग्गि हि तणु जालि करि, आणन्दा रे ! कम्म पटल खडलेह ॥६॥ सत्थु पढन्तउ मूढ़ मरइ, पालई जण विवहारु । काई अचेयण पूजियई, आणन्दा रे! नाही मोझ दुवारु ॥७॥ बउ तउ संजमु सीलु गुण सहय महव्वय भारु । एकण जाणई परम कुल आणन्दा! भमीयइ बहु संसारु ॥८॥ केइ केस लुचावहिं, केइ सिर जट भारु । प्राप्प विन्दु ण जाणहिं आणन्दा ! किम यावहिं भवपारु ॥९॥ तिणि कालु वाहि खसहि, सहहिं परीसहं भारु । दसण णाणई चाहिरउ प्राणन्दा ! मरि सै ए जमु कालु ॥१०॥ पाखि मासि भोयण करहिं पणिउ गासुनि रासु । णन्दा ! तिहणइ जम पुरिवासु ॥११॥ बाहिरि लिंग धरेवि मुणि जु सइ मूढ णिवन्तु । __ अप्पा इक्क ण झावहि आणन्दा ! सिवपुरि जाइ णिभन्तु ॥१२॥ जिणवरु पुज्जइ गुरु थुणहि सत्थई माणु कराइ। अप्पा देव ण चितवहिं आणन्दा! ते णर जमपुरि जाइ ॥१३॥ १. आमेर शाम भाण्डार में सुरक्षित प्रति से।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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