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________________ द्वितीय अध्याय क्या जैन दर्शन में रहस्यवाद संभव है ? आस्तिक और नास्तिक दर्शन जनकाव्य में 'रहस्यवाद' विषय पर विचार करने के पूर्व इस शंका का समाधान आवश्यक है कि जैनमत में रहस्यवाद सम्भव है या नहीं? अनेक विद्वानों ने इसकी संभावना का निषेध करते हुए कहा है कि जैन धर्म एक नास्तिक धर्म है। वह ईश्वर या परब्रह्म की सत्ता में विश्वास नहीं करता। निरीश्वरवादी, रहम्यवादी हो ही नहीं सकता। मध्यकाल के धार्मिक विचारों को दो भागों में बाँट दिया गया था-आस्तिक और नास्तिक । इन शब्दों की व्याख्या भी कई प्रकार से की जाती थी। 'ग्रास्तिक' से तात्पर्य उस सम्प्रदाय से समझा जाता था जो वेद और ईश्वर की सत्ता में विश्वास करते थे और इन दोनों की मना को न मानने वाली विचारधाराएं नास्तिक' कहलाती थीं। मनु ने वेद निन्दक को नास्तिक माना था तो उनके टीकाकार कुल्लूक भट्ट ने परलोक में विश्वाम न करने वाले को। सातवीं शताब्दी के बाद इस प्रवृत्ति का अधिक जोर बढ़ गया था। प्रायः एक मत दुसरे मत की निन्दा करने और हीनता सिद्ध करने हेतु उसे अवैदिक और नास्तिक की उपाधि प्रदान कर दिया करता था। नास्तिक सम्प्रदायों में चार्वाक, माध्यमिक, योगाचार, सौत्रांतिक, वैभाषिक और जैनमत की गणना के अतिरिक्त, मीमांसा और सांख्य आदि निरीश्वरवादी सम्प्रदायों का नाम लिया जाता था। .. देखिए, प्राचार्य हजारी प्रमाद द्विवेदी- मध्यकालीन धर्म साधना, पृ० १५, माहिल्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद, प्र०सं०, १६५२ ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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